ऊधमसिंहनगर जिले में आग ने मचाई तबाही, खनन श्रमिकों करीब सौ झोपड़ियां जलकर राख
ऊधमसिंहनगर जिले के बाजपुर क्षेत्र में खनन का काम कर जीवन-यापन करने वाले श्रमिकों के लिए सोमवार की रात जिंदगी की काली रात बन गई। दिन भर मजदूरी करने के बाद देर शाम को खाना बनाने के दाैरान चूल्हे से उठी आग एक झाेपड़ी को अपनी चपेट में ले ली।
बाजपुर, संवाद सहयोगी : कोरोना संकट के बीच ऊधमसिंहनगर जिले के बाजपुर क्षेत्र में खनन का काम कर अपना जीवन-यापन करने वाले श्रमिकों के लिए सोमवार की रात जिंदगी की काली रात बन गई। दिन भर मजदूरी करने के बाद देर शाम को खाना बनाने के दाैरान चूल्हे से उठी आग एक झाेपड़ी को अपनी चपेट में ले ली। देखते ही देखते आग इतनी विकराल हो गई कि आबादी में फैल गई। तेज हवा के कारण करीब सौ झोपड़ियों को चपेट में ले लिया। श्रिमक परिवारों में हाहाकार मच गया। बाजपुर फायर स्टेशन के इंतजाम नाकाफी पड़ गए। काशीपुर से फायर ब्रिगेड की कई गाड़ियां मंगानी पड़ीं। काफी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। श्रमिकों ने आग में अपनी पूरी कमाई गंवा दी। हालांकि कोई जनहानि नहीं हुई है।
बाजुपर क्षेत्र के इटावा में कोसी नदी किनारे हांडा घाट के करीब सौकड़ों श्रमिक परिवार झोपड़िया बनाकर रहते हैं। रोजाना की भांति सोमवार की देर रात करीब नौ बजे चूल्हे से निकली झोपड़ी ने पकड़ ली जिसने देखते ही देखते विकराल रूप धारण कर लिया। श्रमिक जब तक कुछ समझ पाते आग बेकाबू हो चुकी थी। आनन-फानन में ही श्रमिकों ने अपने मवेशियों को खोलकर बाहर भगा दिया और खुद भी बच्चों सहित बमुश्किल जान बचाई। अग्निकांड में श्रमिकों का अनाज, बिस्तार, बर्तन आदि सबकुछ आग की भेंट चढ़ गया है। घटना के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई। काफी देर तक अफरा-तफरी का माहौल बना रहा। मौके पर पहुंचीं फायर ब्रिगेड की गाड़ियों ने आग बुघने का प्रयास किया । आग से श्रमिकों को लाखों का नुकसान बताया जा रहा है। प्रशासन क्षति का नुकसान कर रहा है।
सौ झोपड़ियां जलकर राख
बताया जा रहा है कि अग्निकांड में चार ट्राली, 20 बैलगाड़ी, दर्जनों टायर और करीब 100 श्रमिकों की झोपड़ियां में रखा घरेलू सामान जलकर राख हो गया। बाजपुर फायर प्रभारी दिनेश पाठक ने बताया कि आग इतनी भयंकर थी कि लोग दहशत में थे। बता दें िक बंजारी गेट कोसी नदी दाबका में खनन के चलते सैकड़ों श्रमिक उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों से आकर परिवार सहित यहां खनन कार्य करते हैं, जो नदी के आसपास ही झोपड़ी बनाकर निवास करते हैं।
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