पहाड़ के लिए खतरनाक साबित हो रहे माइक्रो हाइडिल प्रोजेक्ट, 48 फीसद जलस्रोत सूखे
बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र में छह माइक्रो हाइडिल प्रोजेक्ट निर्माण के दौरान की किए गए ब्लास्ट व टनल की वजह से सरयू नदी के डाउनस्ट्रीट के 50 गांवों में 48 फीसद जलस्रोत सूख गए तो तलहटी के गांवों की 25 फीसद सिंचित भूमि बंजर में तब्दील हो गई है।
नैनीताल, किशोर जोशी : उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में बिजली उत्पादन की परियोजनाएं पर्यावरण को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही हैं। बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र में छह माइक्रो हाइडिल प्रोजेक्ट निर्माण के दौरान की किए गए ब्लास्ट व टनल की वजह से सरयू नदी के डाउनस्ट्रीट के 50 गांवों में 48 फीसद जलस्रोत सूख गए तो तलहटी के गांवों की 25 फीसद सिंचित भूमि बंजर में तब्दील हो गई है। साथ ही 70 घराटों का वजूद मिट गया है।
यह निष्कर्ष निकला है कुमाऊं विवि व इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट कोलंबो व एरीजोना विवि के संयुक्त अध्ययन में। कुमाऊं विवि भूगोल विभाग के प्रो. पीसी तिवारी के निर्देशन में चले अध्ययन की रिपोर्ट तैयार हो चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार माइक्रो हाइड्रो प्रोजेक्ट के अंतर्गत टनल निर्माण व अन्य कार्यों में ब्लास्टिंग से सरयू घाटी के अधिकांश मकानों में दरार आ गई है और ग्रामीणों ने आपदा की आशंका को देखते हुए घर छोड़ दिये हैं। इलाके की महिलाएं अब इन प्रोजेक्ट के खिलाफ मुखर होने लगी हैं, जिसके सार्थक परिणाम आने की उम्मीद है।
50 गांवों की ग्रामीण आजीविका पर असर
प्रो. पीसी तिवारी के अनुसार प्रोजेक्ट के तहत सरयू व सहायक नदियों में बने प्रोजेक्ट के डाउन स्ट्रीट के गांवों का अध्ययन किया गया। ग्रामीणों के विरोध के बाद भी इन प्रोजेक्टों को बनाया गया। इससे अपर सरयू कैचमेंट खत्म हो गया है। तीन माइक्रो हाइड्रो प्रोजेक्ट सरयू एक, सरयू दो व सरयू तीन निजी कंपनियों के पास हैं जबकि बाछम, बहियोर गाड़ व कुनालगाड़ का प्रोजेक्ट उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विभाग उरेडा के अधीन हैं। सरयू में 4.5 मेगावाट, 12.6 मेगावाट व 7.5 मेगावाट के जबकि बाछम के सरयू में 0.10 मेगावाट, कर्मी के बहियोर गाड़ में 0.50 मेगावाट व लामबगड़ के कनाल गाड़ में 0.20 मेघावाट का प्रोजेक्ट है।
यह गांव हैं प्रभावित
मुनार, रेखाड़ी, सूपी, कफलानी, भानी रीठाबगड़, चीराबगड़, बरेत खारबगड़, कुई, घाशी, लाहूर, दुलाम, कौनयूति आदि मुख्य हैं। गांवों में प्रोजेक्ट के प्रभाव का अध्ययन किया गया। अध्ययन के अनुसार करीब 50 फीसद जलस्रोत, 70 फीसद सिंचिंत भूमि, 20 फीसद से अधिक खेती की भूमि के साथ ही 40 फीसद से अधिक कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ है। र्कुमाऊं विवि के प्रो पीसी तिवारी ने बताया कि माइक्रो हाइडिल प्रोजेक्ट से कपकोट के घाटी वाले इलाकों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है। मगर अब इलाके की महिलाएं अपने हितों को लेकर बेहद जागरूक व संवेदनशील हो गई हैं। इसके भविष्य में सकारात्मक परिणाम दिखाई दे सकते हैं।
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