Tribute to Mathura dutt Mathpal : लोक की आवाज बुलंद करने की यात्रा है मठपाल की ‘दुधबोलि‘

Tribute to Mathura dutt Mathpal ठपाल का जीवन दुधबोली के संरक्षण को समर्पित रहा। जीवन के आखिरी पड़ाव में अस्वस्थता के बावजूद वह साहित्य सेवा में लीन रहे। मठपाल का मानना था कि खुद की अभिव्यक्ति के लिए अपनी भाषा से सर्वश्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 08:55 AM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 05:54 PM (IST)
Tribute to Mathura dutt Mathpal : लोक की आवाज बुलंद करने की यात्रा है मठपाल की ‘दुधबोलि‘
श्रीमदभगवत गीता, मेघदूत के साथ बंगला, गढ़वाली, नेपाली व गुजराती साहित्य का कुमाउनी में अनुवाद किया।

गणेश पांडे, हल्द्वानी। साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल का जीवन दुधबोली के संरक्षण को समर्पित रहा। जीवन के आखिरी पड़ाव में अस्वस्थता के बावजूद वह साहित्य सेवा में लीन रहे। मठपाल का मानना था कि खुद की अभिव्यक्ति के लिए अपनी भाषा से सर्वश्रेष्ठ कुछ नहीं हो सकता। पहाड़ को बयां करने में कुमाउनी ज्यादा समर्थ है। इसी सोच के साथ उन्होंने ‘दुधबोलि‘ पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

वह अक्सर कहते कि पहाड़ का सही-सही निरूपण अपनी भाषा से ही संभव है। सभी को अपनी भाषा में लिखने, बोलने का प्रयास करना चाहिए। सभी के सामूहिक प्रयासों से दुधबोली की उन्नति हो सकती है। स्व. मठपाल साहित्यिक सेवा के जरिये कुमाउनी व गढ़वाली भाषा को भारतीय संविधान की आठवी अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए संघर्षरत रहे। शोध प्रवृत्ति वाले मठपाल ने लोकभाषा के विकास के उद्देश्य से प्रचलन से बाहर हुए छह हजार ठेठ कुमाउनी शब्दों व दो हजार मुहावरों का संकलन किया। श्रीमदभगवत गीता, मेघदूत के साथ बंगला, गढ़वाली, नेपाली व गुजराती साहित्य का कुमाउनी में अनुवाद किया। उनके निधन पर साहित्य जगत से जुड़े लोगों ने शोक जताया है।

इन्होंने किया याद

स्व. मथुरादत्त कांडपाल ने कवि व कुशल संपादक के रूप में कुमाउनी साहित्य जगत को बहुत बड़ा योगदान दिया। साहित्यकर्मी के साथ वह बेहतरीन साथी भी थे। उनकी कमी पूरी नहीं की जा सकती।

-महेंद्र ठकुराठी, लेखक व साहित्यकार

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साहित्यकार मठपाल का जीवन कुमाउनी साहित्य की समृद्धि व प्रसार के लिए समर्पित रहा। दुधबोली पत्रिका के प्रकाशन के लिए वह अपनी पेंशन का हिस्सा भी खर्च देते। उन्हें भावभानी श्रद्धांजलि।

-दिनेश कर्नाटक, कहानीकार व शिक्षक

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कुमाउनी साहित्य संसार को स्व. मठपाल ने जो योदगान दिया, उसकी बयार हमेशा बहती रहेगी। वह मातृभाषा संरक्षण के पक्षधर थे। दुधबोली में लेखन करने वालों को वह हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।

-ललित तुलेरा, युवा लेखक

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स्व. मठपाल कुमाउनी भाषा-साहित्य के लिए आजीवन समर्पित रहे। दुधबोली के संरक्षण में उनका योगदान अविस्मरणीय है। जीवन के अंतिम महीनों में उन्हें कुछ अस्वस्थता झेलनी पड़ी।

-दिवा भट्ट, कथाकार

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