अमेरिका में नौकरी छोड़ मुर्गीपालन कारोबार को दे रहे संजीवनी, पीएम मोदी भी कर चुके इनके स्टार्टअप की सराहना
अर्चना व श्रीनिवासन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइएम) काशीपुर के इनोवेशन एंड आंत्रप्रेन्योरशिप से 2019 में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने हैचरी मानीटरिंग व अलार्मिंग सिस्टम पर काम किया। आज उनसे गोदरेज एग्रो सुग्ना फूड जीबीआर हैचरी जैसी नामी कंपनियां सेवा ले रही हैैं।
अभय पांडेय, काशीपुर। मुर्गीपालन (हैचरी) कारोबार में अचानक बड़ी संख्या में चूजों की मौत होने या मुर्गियों में किसी बीमारी के कारण संचालकों को कई बार काफी घाटा होता है। कई संचालक मानसिक दबाव में गलत कदम उठा लेते हैैं। कुछ दिवालिया हो जाते हैैं। हैदराबाद निवासी अर्चना व उनके पति श्रीनिवासन ने हैचरी कारोबार की मुश्किलों को हल करने के लिए अमेरिका में करीब एक करोड़ का पैकेज छोड़ भारत का रुख किया और देखते ही देखते इंटरनेट आफ थिंग्स (आइओटी) तकनीक से मुर्गीपालन उद्योग में नई जान फूंक दी। आज उनकी तकनीक उत्तराखंड के साथ ही नेपाल, बिहार, हैदराबाद व पंजाब के मूर्गीपालन उद्योग की मुश्किलों का समाधान कर रही है। इस स्टार्टअप को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सराहा है।
दोस्त की बर्बादी ने बदली सोच
अर्चना के नजदीकी पारिवारिक मित्र प्रतीक की हैचरी में वर्ष 2019 में एक ही रात में एक लाख चूजों की मौत हो गई। इससे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। इसके बाद अर्चना ने तय किया कि अपनी योग्यता और आइओटी तकनीक का इस्तेमाल हैचरी उद्योग को सफल बनाने में करेंगी। इसमें उनकी मदद की पति श्रीनिवासन ने। दोनों ने मिलकर अलार्मिंग व मानीटरिंग सिस्टम पर काम शुरू किया।
आज उनसे गोदरेज एग्रो, सुग्ना फूड, जीबीआर हैचरी जैसी नामी कंपनियां सेवा ले रही हैैं। यूं आसान हुई राह: आइओटी की मदद से 24 घंटे मोबाइल पर हैचरी प्लांट से जड़ी सभी जानकारियां प्राप्त होती हैं। मसलन, हैचरी का तापमान, आद्रता, सुरक्षा और यहां तक कि चूजों और उनके स्वास्थ्य का हाल भी एक क्लिक पर मौजूद होता है। इस तकनीक से पूरे प्लांट की निगरानी भी आसान हो गई है। वह भी कम खर्च में।
काशीपुर आइआइएम से प्रशिक्षण
अर्चना व श्रीनिवासन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइएम), काशीपुर के इनोवेशन एंड आंत्रप्रेन्योरशिप से 2019 में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने हैचरी मानीटरिंग व अलार्मिंग सिस्टम पर काम किया।
ऐसे काम करता है सिस्टम
आइओटी तकनीक के तहत हैचरी में सेंसर इंस्टाल किया जाता है, जो क्लाउड सिस्टम के माध्यम से कनेक्ट किया जाता है। सेंसर हैचरी के भीतर की गतिविधियों को हर पांच मिनट पर अपडेट करता है। यह हैचरी संचालक के मोबाइल से भी जुड़ा रहता है। किसी खतरे की स्थिति में कंट्रोल रूम को पहला अलार्म देता है। वहां प्रतिक्रिया नहीं होने पर सीनियर मैनेजर को अलर्ट करता है। मसलन गर्मी के समय तापमान बढ़ा तो सेंसर रेड अलर्ट करेगा। जाड़े में तापमान कम हुआ तो भी सतर्क करेगा। चूजों की सामान्य गतिविधियों में बदलाव होने पर भी तत्काल संबंधित मोबाइल नंबर पर मैसेज देगा। ऐसे में समय रहते उचित प्रबंधन कर नुकसान से बचा जा सकता है। एक हजार चूजों की निगरानी के सेटअप पर मात्र 15 से 20 हजार रुपये का खर्च आता है।
क्या है इंटरनेट आफ थिंग्स
इंटरनेट आफ थिंग्स या आइओटी एक ऐसा कांसेप्ट है जिसके तहत माना जाता है कि अगर दुनिया की सारी चीजें (फिजिकल) इंटरनेट से कनेक्ट हो जाएं, तो वह एक दूसरे को पहचान कर संदेशों का आदान प्रदान कर सकेंगी। इसका प्रयोग अब तकनीक को नए स्तर पर ले जाने में किया जा रहा है।
अर्चना का कहना है कि भारत में बेहतर मानीटरिंग व अलार्मिंग सिस्टम नहीं होने के कारण हैचरी कारोबार का बुरा हाल है। तकनीक का इस्तेमाल कर समस्या का समाधान किया जा सकता है। हम इसी प्रयास में लगे हैं। वहीं, श्रीनिवासन ने बताया कि हैचरी में आइओटी तकनीक से तैयार डिवाइस की मदद से होने वाली 20 से 22 फीसद की क्षति को घटाकर शून्य से दो फीसद लाया जा सकता है। इसकी मदद से लेबर कास्ट में भी काफी कमी आई है।
आइआइएम फीड के प्रोजेक्ट इंचार्ज सफल बत्रा ने बताया कि अर्चना और उनके पति श्रीनिवासन एक बेहतर स्टार्ट आइडिया पर काम कर रहे हैं, जिसमें आइओटी की मदद से हैचरी उद्योग में होने वाले नुकसान को कम किया जा रहा है।