पुनर्वास को लेकर पसोपेश में जमरानी बांध डूब क्षेत्र के लोग, अब तक नहीं फाइनल हुई जमीन

जमरानी बांध बनने पर डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण पुनर्वास को लेकर पसोपेश में हैं। प्रशासन ने अब तक न तो उनको पुनर्वासित करने के लिए जमीन फाइनल की है और न ही अन्य मांगों पर कार्रवाई हुई है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 02:08 PM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 02:08 PM (IST)
पुनर्वास को लेकर पसोपेश में जमरानी बांध डूब क्षेत्र के लोग, अब तक नहीं फाइनल हुई जमीन
पुनर्वास को लेकर पसोपेश में जमरानी बांध डूब क्षेत्र के लोग, अब तक नहीं फाइनल हुई जमीन

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : जमरानी बांध बनने पर डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण पुनर्वास को लेकर पसोपेश में हैं। प्रशासन ने अब तक न तो उनको पुनर्वासित करने के लिए जमीन फाइनल की है और न ही अन्य मांगों पर कार्रवाई हुई है। ऐसे में डूब क्षेत्र के लोगों को भविष्य की चिंता लगातार सता रही है। जमरानी बांध बनने पर डूब क्षेत्र में 425 परिवार के 821 खातेदार आ रहे हैं। इनको पुनर्वासित करने के लिए ऊधम सिंह नगर के दियोहरी में 52.85 एकड़, खटीमा तहसील के ग्राम उलाहनी में 120.07 एकड़, सितारगंज तहसील के ग्राम लालरखास, कल्याणपुरी बरा में 247.09 एकड़, लालरपट्टी ग्राम में 37.57 एकड़ में पुर्नवास हेतु कुल 457.58 एकड़ भूमि चयनित की गयी है। हालांकि इस जमीन को अब तक हस्तांतरित नहीं किया गया है। अब प्रशासन व सिंचाई महकमा डूब क्षेत्र के लोगों से वार्ता कर पुनर्वास आदि समस्याओं का अंतिम समाधान निकालने की तैयारी में जुट गया है।

वहीं डूब क्षेत्र के ग्रामीण शुरुआत से ही मुआवजे में पांच एकड़ भूमि, परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी, पुनर्वासित किए जाने वाले स्थान पर चिकित्सा, शिक्षा आदि मूलभूत सुविधाएं देने समेत 12 मांगें उठा रहे हैं। जबकि शासन-प्रशासन लारा एक्ट 2013 के तहत ही प्रभावित लोगों को अधिकतम मुआवजा व सुविधाएं देगा। ऐसे में ग्रामीण उलझन में फंसे हुए हैं। जमरानी बांध संघर्ष समिति के अध्यक्ष नवीन पलडिय़ा ने बताया कि शासन की ओर से गठित उच्च स्तरीय कमेटी के सामने भी वह अपनी मांगों को रख चुके हैं। जिन स्थानों पर ग्रामीणों को बसाने की तैयारी चल रही है, उसे अब तक दिखाया तक नहीं किया गया है। जिस सामाजिक परिवेश में ग्रामीण रह रहे हैं, पुनर्वासित होने पर उनको वैसी आबोहवा व सामाजिक परिवेश मिलेगा या नहीं, इसको लेकर ग्रामीण चिंतित हैं। इसके साथ ही अन्य मांगों पर भी प्रशासन या शासन की ओर से सीधा जवाब अब तक ग्रामीणों को नहीं मिला है।

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