आदमखोरों ने मासूमों की जान ली तो शिक्षक ने थाम ली राइफल, अब तक 54 का कर चुके हैं शिकार

उत्तराखंड में किसी आदमखोर तेंदुए या बाघ को ढेर करना हो तो विभाग से लेकर ग्रामीणों की जुबान पर लखपत सिंह रावत का नाम आता है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 16 Jul 2020 07:10 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jul 2020 07:58 AM (IST)
आदमखोरों ने मासूमों की जान ली तो शिक्षक ने थाम ली राइफल, अब तक 54 का कर चुके हैं शिकार
आदमखोरों ने मासूमों की जान ली तो शिक्षक ने थाम ली राइफल, अब तक 54 का कर चुके हैं शिकार

हल्द्वानी, जेएनएन : उत्तराखंड में किसी आदमखोर तेंदुए या बाघ को ढेर करना हो तो विभाग से लेकर ग्रामीणों की जुबान पर लखपत सिंह रावत का नाम आता है। लखपत यानी एक शिक्षक जो 12 मासूमों की मौत से आहत होकर पेशेवर शिकारी बन गया। 19 साल पहले आठ महीने तक आदमखोर तेंदुए को तलाशने के बाद उन्होंने अंधेरे में पचास मीटर की दूरी से निशाना लगाया था। और शिकारी के तौर पर जीवन में पहले नरभक्षी तेंदुए को मौत के घाट उतार दिया। फिर यह सिलसिला चलता गया। वर्तमान में गैरसैंण में उपखंड शिक्षाधिकारी के तौर पर नौकरी कर रहे लखपत अब तक 52 तेंदुओं और दो बाघों को मार चुके हैं। जबकि दुनियाभर में मशहूर जिम कार्बेट ने 33 आदमखोर ढेर किए थे।

साल 2000 से 2002 के बीच गैरसैंण के आदीबद्री क्षेत्र में नरभक्षी तेंदुए का आतंक था। लखपत सिंह रावत तब बतौर शिक्षक वहां तैनात थे। 12 बच्चों की जान जाने के बाद अगस्त 2001 में उन्होंने वन विभाग से तेंदुए को मारने की अनुमति हासिल की। पूर्व में एसएसबी द्वारा दी जाने वाली गुरिल्ला ट्रेनिंग का हिस्सा होने की वजह से उन्हें बंदूक चलाने का अनुभव था। करीब आठ महीने तक तेंदुए की तलाश करने के बाद 15 मार्च 2002 को उन्होंने उसे ढेर कर दिया।

लखपत बताते हैं कि वो रात 8.10 मिनट का समय था। घर के बाहर एक बच्चा बर्तन धो रहा था और नरभक्षी गुलदार गेंहू के खेत में पॉजिशिन बनाकर हमले की फिराक में था। जिप्सी में वहां से गुजर रहे लखपत ने करीब 50 मीटर की दूरी से गोली चलाकर उसे ढेर कर दिया। उसके बाद से कलम-कागज थामने वाले शिक्षक और 315 बोर की राइफल का रिश्ता मजबूत हो गया। उत्तराखंड में हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर को छोड़कर बाकी अन्य 11 जिलों में वो नरभक्षियों को मार चुके हैं।

इंसान के साथ गुलदार को भी बचाते हैं

शिकारी लखपत सिंह का कहना है कि बतौर जनसेवा इस काम को करते हैं। इंसान के साथ वो गुलदार की भी जान बचा रहे हैं। लखपत के मुताबिक कोई अनट्रेंड व्यक्ति किसी दूसरे गुलदार को शक के आधार पर मार सकता है। जबकि ट्रेंड शिकारी पदचिन्ह, मूवमेंट का आंकलन कर बता देगा कि यह आदमखोर है। और उसे ही निशाना बनाएगा। लखपत का बड़ा बेटा अजय ग्राम विकास अधिकारी और छोटा विजय एयरफोर्स में तैनात है। सहयोगी के तौर पर बेटे में भी कुछ ऑपरेशन में शामिल हो चुके हैं।

70 लाख खर्च मारा लखपत ने

लखपत ने हाल में दस जुलाई को चमोली में एक आदमखोर गुलदार मारा था। साल 2016 में रामनगर में आदमखोर बाघिन को तलाशने में विभाग के पसीने छूट गए थे। देश में पहली बार हेलीकॉप्टर तक से तलाश की गई थी। हवन-यज्ञ के अलावा भंडारा तक करवाया गया। इस ऑपरेशन में करीब 70 लाख खर्च हुए थे। जिसके बाद लखपत ने इसके आतंक से निजात दिलाई थी। अब हल्द्वानी के रानीबाग व काठगोदाम में आदमखोर की दहशत को लेकर वन विभाग ने लखपत से संपर्क साधा है।

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