कुमाऊं का कालापानी है चुकुम गांव, कोसी की बढ़ के कारण देश दुनिया से कट गए यहां के लोग

चुकुम गांव यानी कुमाऊं का कालापानी। दुर्गम की दुश्वारियों के बीच बसा ऐसा गांव जो हर बरसात में कोसी की बाढ़ के कारण अलग थलग पड़ जाता है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 25 Mar 2019 10:13 AM (IST) Updated:Mon, 25 Mar 2019 10:18 AM (IST)
कुमाऊं का कालापानी है चुकुम गांव, कोसी की बढ़ के कारण देश दुनिया से कट गए यहां के लोग
कुमाऊं का कालापानी है चुकुम गांव, कोसी की बढ़ के कारण देश दुनिया से कट गए यहां के लोग

विनोद पपनै, रामनगर : चुकुम गांव यानी कुमाऊं का कालापानी। दुर्गम की दुश्वारियों के बीच बसा ऐसा गांव जो हर बरसात में कोसी की बाढ़ के कारण अलग थलग पड़ जाता है। तंत्र की बेरुखी के कारण यहां जंगली जानवरों का जोखिम भी हर वक्त रहता है। पहाड़ सी चुनौतियों वाले इस उपेक्षित गांव के बच्चे तैर कर नदी पार स्कूल पहुंचते हैं। चौतरफ ा मार झेल रहे चुकुम के विस्थापन की फ ाइल भी पिछले दो साल से वन एवं पर्यावरण सचिव कार्यालय देहरादून में धूल फांक रही है।
रामनगर से महज 25 किलोमीटर दूर 115 हैक्टेयर क्षेत्र में आजादी से पहले से बसा यह यह गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। एक ओर से कोसी नदी से बाढ़ का खतरा तो दूसरी ओर वियावान जंगल होने के कारण  हिंसक जानवरों से जान का खतरा। मगर हर चुनाव के दौरान नेताओं के  आश्वासन इलाके के लिए कड़वी गोली में मीठे लेप की तरह नजर आते हैं।

गांव में हैं सात सौ मतदाता
चुकुम गांव में सौ से भी ज्यादा परिवार रहते है जिनमें सात सौ मतदाता हैं। ये दीगर बात है कि सरकार गांव-गांव में विकास की बात करती है। मगर इस गांव को देखने के बाद जनता द्वारा चुने माननीय व सरकार के सारे दावों की कलई यहां आकर खुल जाया करती है।

तबाही के निशान छाेड़ जाती है बाढ़
चुकुम गांव के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। कोसी नदी में आने वाली बाढ़ हर बार यहां तबाही के निशान छोड़कर चली जाती है। 1993 की बाढ़ में पांच लोग बह गए थे। हिंसक जानवरो ने लगभग आधा दर्जन लोगों को घायल किया तो पिछले दो लोगों को बाघ ने अपना निवाला भी बना दिया। अब तक न जाने तमाम मवेशी मारे जा चुके हैं। 1993 की बाढ़ के बाद पहली बार गांव में पहुंची तत्कालीन जिलाधिकारी आराधना जौहरी ने गांव को अन्यत्र विस्थापित किए जाने की पैरवी की थी। तब से लगातार इनके विस्थापन की प्रक्रिया चली आ रही है। लेकिन विस्थापन की प्रक्रिया वन्यजीव एवं पर्यावरण सचिव के देहरादून दफ्तर में धूल फांक रही है।

नदी पार कर पढ़ने जाते हैं बच्‍चे
इस गांव में विकास के सारे दावे खोखले हैं। विकास के नाम पर गांव में बिजली के अलावा एक हाईस्कूल जरूर है। हाईस्कूल के बाद बच्चों को पढऩे के लिए रोजाना नदी पार करके ही जाना होता है। गांव को जाने के लिए न तो कोई सड़क ही है और न ही नदी पार करने के लिए पुल। यदि गांव को कोई व्यक्ति बीमार हो गया तो उसे गांव के लोग नदी पार कराने के बाद मोहान में लेकर आते है। मोहान से 108 सेवा से उसे रामनगर लाया जाता है।

आज तब नही मिली सांसद निधि
ग्राम प्रधान जस्सी राम कहते हैं कि यहां के लोग उत्साह से मतदान किया करते हैं। मगर आज तक जितने भी सांसद चुने गए उन्होंने हमारी बात तो सुनी मगर सांसद निधि का एक भी पैसा गांव के विकास के लिए नहीं लगाया।

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