Happy Birthday Prasoon Joshi : पहाड़ के गांवों से मायानगरी तक कैसा रहा है प्रसून जोशी का सफर, जानिए
Happy Birthday Prasoon Joshi सुप्रसिद्ध गीतकार रचनाकार व कुशल लेखक के साथ ही एडगुरु के नाम से मशहूर प्रसून जोशी ने बेशक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। मगर साहित्य से जबर्दस्त लगाव व प्रकृति प्रेमी प्रसून अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं।
अल्मोड़ा, जागरण संवाददता : Happy Birthday Prasoon Joshi : सुप्रसिद्ध गीतकार, रचनाकार व कुशल लेखक के साथ ही एडगुरु के नाम से मशहूर प्रसून जोशी ने बेशक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। मगर साहित्य से जबर्दस्त लगाव व प्रकृति प्रेमी प्रसून अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। मायानगरी की चकाचौंध भी उन्हें पहाड़ से अलग नहीं कर सकी है। यही वजह है कि उनके लेख हों या विज्ञापन उनमें उत्तराखंड के पहाड़ की झलक जरूर मिलती है। खास बात कि पहाड़ का रुख करने पर वह कुमाऊंनी बोली से लोगों के बीच अलग ही पहचान बनाए रखते हैं।
साहित्य, संस्कृति व शिक्षा के हब कहे जाने वाले अल्मोड़ा नगर स्थित मोहल्ला स्यूनराकोट में 16 सितंबर 1971 को जन्मे। मूल रूप से दन्यां (धौलादेवी ब्लॉक) से ताल्लुक रखने वाले प्रसून की प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से तो बाद की पढ़ाई गढ़वाल से भी हुई। बचपन से ही साहित्य प्रेमी रही इस प्रतिभा को अनूठी लेखनी व दिल को छू जाने वाले गीतों की रचना के लिए वर्ष 2015 में पद्मश्री सम्मान दिया गया।
प्रकृति के करीब रहना प्रसून की खूबी
पद्मश्री प्रसून की बातों में अक्सर प्रकृति प्रेम खूब झलकता है। 'ठंडा मतलब कोकोकोला' विज्ञापन उन्होंने ही बनाया। इसमें पहाड़ की शीतलता को उन्होंने दर्शाया। करीब एक दशक पूर्व अल्मोड़ा प्रवास के दौरान उन्होंने 'दैनिक जागरण' से विचार साझा किया- प्रकृति अद्भुत है। वह हमें आपको संघर्ष करना सिखाती है। चुनौतियों से निपटने की प्रेरणा देती है। पद्मश्री प्रसून मानते हैं कि जटिल भूगोल वाले पहाड़ का जीवन आसान नहीं होता। मगर पर्वतीय वादियों में अध्यात्म की अनुभूति ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया।
माता पिता से विरासत में मिला साहित्य प्रेम
प्रकृति प्रेम के साथ ही लोक संस्कृति से लगाव की प्रेरणा उन्हें विरासत में मिली। इसमें उनकी जननी की बड़ी भूमिका रही। उनसे मुलाकात के दौरान साहित्य जगत, प्रकृति और उनके विज्ञापन एवं शब्दावली में पहाड़ प्रेम पर चर्चा का हवाला देते हुए वरिष्ठ संस्कृति कर्मी नवीन सिंह बिष्ट बताते हैं कि पद्मश्री प्रसून के माता पिता शिक्षाविद् रहे। साहित्य की समझ उन्हीं से मिली। मां तो उन्हें कविवर सुमित्रानंदन पंत की कविताएं सुनाया करती थीं।
मध्यमवर्गी परिवार से रहे
पद्मश्री प्रसून जोशी मध्यमवर्गी शिक्षक परिवार से रहे। एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली की एक एड एजेंसी में नौकरी शुरू की। साथ में साहित्य सृजन खासतौर पर कविताएं व गीत लिखते रहे। और दिन रात मेहनत ने उन्हें इंटरनेशनल अवार्ड भी दिलाया। एल्बम के लिए लोग गीत लिखवाने के लिए उनके पास आने लगे। बाद में उन्होंने 'अबके सावन ऐसे बरसे...' गीत लिखा जो खासा पसंद किया गया। बाद में प्रसून की रचनाएं सभी को कायल बनाने लगीं। प्रसिद्ध फिल्म निदेशक राजकुमार संतोषी ने अपनी फिल्म 'लज्जा' के लिए प्रसून से ही गीत लिखने को कहा। ऐसे और भी तमाम उदाहरण हैं।
युगपुरुष की कहानी से हुए प्रेरित
पद्मश्री प्रसून जोशी ने एक बार युगपुरुष स्वामी विवेकानंद की हिमालय पदयात्रा पर बनी डॉक्यूमेंट्री देखी। उसमें अल्मोड़ा से कुछ दूर आध्यात्मिक स्थल कसारदेवी मंदिर का जिक्र था। युगनायक ने यहां चट्टान पर ध्यान लगाया था। पद्मश्री प्रसून के लिए यह सुखद अनुभूति थी। दरअसल, प्रकृति के करीब, पहाड़ में अध्यात्म से सीधा साक्षात्कार उन्हें भी होता आया है।