डेरी चलाने वाले अब्दुल के आंगन में देशी-विदेशी कबूतरों का है रैन बसेरा

कुछ लोगों का पशु-पक्षियों से लगाव भी अनोखा होता है। ऐसे ही हैं ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा बग्घा निवासी गुर्जर अब्दुल हकीम। अब्दुल ने देशी-विदेशी कबूतरों की एक से बढ़कर एक प्रजातियां पाल रखी हैं। बताते हैं कि पक्षियों का रंग-बिरंगा संसार उन्हें बचपन से भाता रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 10:12 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 10:12 AM (IST)
डेरी चलाने वाले अब्दुल के आंगन में देशी-विदेशी कबूतरों का है रैन बसेरा
खटीमा बग्घा निवासी गुर्जर अब्दुल हकीम ने देशी-विदेशी कबूतरों की एक से बढ़कर एक प्रजातियां पाल रखी हैं।

खटीमा, जेएनएन : कुछ लोगों का पशु-पक्षियों से लगाव भी अनोखा होता है। ऐसे ही हैं ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा बग्घा निवासी गुर्जर अब्दुल हकीम। अब्दुल ने देशी-विदेशी कबूतरों की एक से बढ़कर एक प्रजातियां पाल रखी हैं। बताते हैं कि पक्षियों का रंग-बिरंगा संसार उन्हें बचपन से भाता रहा है। लेकिन बढ़ते प्रदूषण और अंधाधुंध निर्माण के कारण पक्षियों की संख्या तेजी से कम होने लगी है। यह बात उन्हें हमेशा सालती है। अब्दुल बताते हैं कि वह एक साल पहले मुरादाबाद घूमने गए थे। वहां एक व्यक्ति को ढेर सारा कबूतर पाले देखा, तभी से ये हसरत थी कि मैं भी अपने शौक को पूरा करूं। तभी से 50 से अधिक गाय-भैंसों को पालकर डेरी चलाने वाले अब्दुल ने कबूतरों को पालना शुरू किया।

चिट्ठियां पहुंचाने वाले भरोसेमंद कबूतर

कबूतर जा जा, जा... पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ। साजन फिल्म का यह गाना आपने जरूर सुना होगा। कबूतर सदियों तक न सिर्फ प्रेम में बल्कि राजनीति कूटनीति और युद्ध में भी विश्वसनीय संदेशवाहक बने रहे हैं। कबूतरों से पहले के संदेश भेजने के तरीकों पर गौर करें तो घुड़सवारों के जरिए संदेश एक से दूसरी जगह भेजे जाते थे, इन तरीकों में बहुत समय लगने के साथ-साथ और भी कई मुश्किलें सामने आती थीं। इन सब वजहों से एक ऐसे माध्यम की जरूरत थी जो तेज होने के साथ-साथ भरोसेमंद भी हो, करीब 3000 साल पहले यह तलाश होमिंग पिजन्स यानी हमेशा घर वापस लौटने वाले कबूतरों पर खत्म हुई। इसके बाद तो कबूतर पालने का शौक इंसानों के सिर चढ़कर बोला।

कबूतरों की अनोखी हैं खूबियां

अब्दुल के बसरे में ऐसे कबूतर हैं जिनकी खूबियां भी अलग-अलग हैं। इरानी कबूतर सेंटीमेंट के गले में परों की टाई बनी हुई है, गफूर नाम का कबूतर अलग-अलग आवाज निकालता है, तो पटियाला कबूतर एक लंबी उड़ान लेता है। लौहरी सराजी के सिर अलग-अलग रंग से खूबसूरत बटोरे हुए हैं। लक्खा कबूतर और निराला है, उसके पंख मोर की तरह पीछे खडे़ रहते हैं।

अफगानिस्तान, जापान के भी हैं कबूतर

अब्दुल हकीम बताते हैं कि उनके पास अफगानिस्तान, इंग्लैंड, जापान, इरान, पाकिस्तान व भातर की विभिन्न प्रजाति के कबूतर हैं। अब वह जॉकोपिन, किंग व बुखारा की प्रजाति के कबूतरों को खरीदने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जॉकोपिन में खास बात यह है कि उसके नकाब होता है, सिर में बाल होते हैं। जिनका मुंह ढका होता है। बुखारा प्रजाति के सिर में बाल के बीच में मांग निकली होती है।

यह हैं कबूतर की प्रजातियां

रैंट, मोटिना किंग, शॉट फेश, सेंटीनेट, ब्यूटीउमर, लौहरी, सराजी, लक्खा, गफूरी, पटियाला, लालबंद, सूरजमुखी, कावरे इस समय अब्दुल के आंगन में मौजूद हैं।

खुराक भी दमदार

कबूतरों को बच्चों की तरह पाला जाता है। उनके खान-पान और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है। गर्मी में कबूतरों को सरसों, ग्लूकोज, गेहूं की छनन आदि दिया जाता है। जबकि सर्दियों में बाजार व अन्य दाना दिया जाता है। प्रतियोगिता के दिनों में कबूतरों को घी में बनी सोयाबीन की रोटी, बादाम, खमीरा व अन्य मेवा दिए जाते हैं। सामान्य तौर पर कबूतरों का जीवन 10 से 12 साल होता है। सभी देखभाल व खानपान बेहतर रहे तो कबूतरों 25 साल तक भी जीते हैं।

विश्व का सबसे महंगा कबूतर

दुनिया में एक ऐसा कबूतर भी है, जो आम नही बेहद खास है और इस खास कबूतर की कीमत है 9.7 करोड़। इस कबूतर को दो माह पहले चाइना के फॉर्मूला वन कार रेसिंग के वल्र्ड चैंपियन लुईस हैमिल्टन ने 1.4 मिलियन डॉलर यानी 9.7 करोड़ में खरीदा है। कबूतर का नाम है अरमांडो है। यह बेल्जियम का कबूतर है, जो लंबी रेस के लिए जाना जाता है। अरमांडो एकलौता लॉन्ग डिसटेंस रेसिंग पीजन है, जो कबूतरों का लुईस हैमिल्टन के नाम से मशहूर है। कबूतर अभी 5 साल का है और रिटायरमेंट के करीब है।

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