कैंचीधाम आश्रम में इस बार नहीं आयोजित होगा महोत्सव, घर पर करें नीब करोरी बाबा का स्मरण

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित विश्वि प्रसिद्ध सिद्ध पीठ कैंचीधाम आश्रम में 15 जून को होने वाला महोत्सव इस बार कोरोनावायरस के कारण स्थगित कर दिया गया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 12:26 PM (IST) Updated:Sun, 07 Jun 2020 08:47 AM (IST)
कैंचीधाम आश्रम में इस बार नहीं आयोजित होगा महोत्सव, घर पर करें नीब करोरी बाबा का स्मरण
कैंचीधाम आश्रम में इस बार नहीं आयोजित होगा महोत्सव, घर पर करें नीब करोरी बाबा का स्मरण

नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित विश्वि प्रसिद्ध सिद्ध पीठ कैंचीधाम आश्रम में 15 जून को होने वाला महोत्सव इस बार कोरोनावायरस के कारण स्थगित कर दिया गया है। 15 जून को हर साल यहां महोत्सव का आयोजन किया जाता है , जिसमें बाबा नीब कराेरी के आश्रम का प्रसाद ग्रहण करने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। 56 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब मंदिर के स्थापना दिवस पर आयोजन नहीं होगा। मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया है। यूं तो बाबा का दर्शन करने के लिए सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है, लेकिन स्थापना दिवस पर भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता रहा है।  

घरों में रहकर करें बाबा का स्मरण 

मंदिर के ट्रस्टियों ने बाबा नीब करौरी के भक्तों से संयम बनाने की अपील की है और संकट के इस दौर में घरों में रहकर बाबा का स्मरण करने को कहा है। बाबा नीब करौरी 1962 में कैंची आए थे और 15 जून 1964 को हनुमान मंदिर की स्थापना की थी। तब से हर वर्ष 15 जून को यहा मेला लगाया जाता है। इस मेले में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते रहे हैं लेकिन इस बार मेला नहीं लगने से बाबा के भक्तों में काफी निराशा है।

मंदिर में प्रवेश पूरी तरह से वर्जित 

कैंची धाम मंदिर के प्रबंधक विनोद कुमार जोशी ने बताया कि लॉकडाउन में मंदिर में भक्तों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। ऐसा मंदिर की स्थापना के बाद से पहली बार हुआ है। हालांकि मंदिर प्रबंधन नियमों पालन करते हुए मंदिर में सुबह व शाम की आरती कर रही है। कोरोना महामारी के इन हालातों के कारण 15 जून को होने वाला मेला इस वर्ष संभव नहीं हो पाएगा। सभी भक्त घरों में रहकर बाबा का स्मरण करें। महामारी को दूर करने के लिए बाबा से प्रार्थना करे। मानव कल्याण के लिए शासनादेशों का पालन करें।

हनुमान जी के भक्त थे नीब करोरी बाबा 

नीब करोरी बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा के आश्रम में देश विदेश के भक्तों का आना लगा रहता है। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है,  यहां देवी-देवताओं के साथ हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे।

रिचर्ड एलपर्ड ने लिखी है बाबा पर पुस्तक 

रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव' नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा के कई भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे। यह घटना 1943 के आसपास की है। एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्होंने बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।

जानिए क्या था बाबा के बुलेट प्रूफ का किस्सा  

दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती। वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और चादर को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।

जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।

लगभग एक माह के बाद बुजुर्ग दंपत्ति का इकलौता पुत्र बर्मा फ्रंट से लौट आया। वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त बर्मा फ्रंट पर तैनात था। उसे देखकर दोनों बुजुर्ग दंपत्ति खुश हो गए और उसने घर आकर कुछ ऐसी कहानी बताई जो किसी को समझ नहीं आई।

उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे।

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