शहद उत्‍पादन के रूप में पहचाना जाएगा नैनीताल जिले का ये गांव, जानिए

ज्योलीकोट क्षेत्र के ज्योली गांव को शहद उत्‍पादन के लिए पहचान मिलेगी। इसके लिए सरकारी कवायद शुरू की गई है। यहां घर-घर जैविक शहद का उत्पादन के लिए ग्रामीणों को महज पांच सौ रुपये में मौनवंश पालने के लिए बाक्स दिए जाएंगे। जिनकी बाजार में कीमत ढाई हजार है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 19 Jan 2021 01:05 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jan 2021 01:05 PM (IST)
शहद उत्‍पादन के रूप में पहचाना जाएगा नैनीताल जिले का ये गांव, जानिए
शहद उत्‍पादन के रूप में पहचाना जाएगा नैनीताल जिले का ये गांव, जानिए

नैनीताल, किशोर जोशी : नैनीताल जिले के ज्योलीकोट क्षेत्र के ज्योली गांव को शहद उत्‍पादन के लिए पहचान मिलेगी। इसके लिए सरकारी कवायद शुरू की गई है। यहां घर-घर जैविक शहद का उत्पादन के लिए ग्रामीणों को महज पांच सौ रुपये में मौनवंश पालने के लिए बाक्स दिए जाएंगे। जिनकी बाजार में कीमत ढाई हजार है।  

दरअसल उद्यान महकमा पूरे जिले में अलग-अलग क्षेत्रों में कलस्टर बना रहा है। कोविड-19 के दौर में स्वरोजगार के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करने के लिए कार्ययोजना बनाई गई है। जिला उद्यान अधिकारी भावना जोशी के अनुसार ज्योली को शहद उत्पादन के माडल के रूप में विकसित किया जाएगा। यहां के 50 से अधिक ग्रामीणों को मौन पालन का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। फिलहाल ग्रामीणों में तीन सौ मौनवंश पालन के लिए बाक्स दिए जाएंगे। गांव को शहद गांव के रूप में पर्यटन मानचित्र पर भी माडल के रूप में पहचान दिलाई जाएगी। 

1938 में स्थापित हुआ मौन पालन केंद्र

इतिहासकार प्रो. अजय रावत के अनुसार प्रसिद्ध विज्ञानी डा. राजेंद्र नाथ मुट्टू ने मौन पालन केंद्र की स्थापना की थी। ब्रिटिशराज में यहां देश के साथ ही नेपाल से भी मौनपालकों को प्रशिक्षण दिया जाता था। यह मौन पालन केंद्र भारत के सबसे पुराने केंद्रों में एक है। 

प्रदेश में होता है 21164 क्विंटल शहद उत्पादन

उद्यान विभाग के संयुक्त निदेशक एचसी तिवारी बताते हैं कि पर्वतीय इलाकों में 4468 मौन पालकों द्वारा 26883 मौनवंश बाक्स में 2253 क्विंटल जबकि मैदानी इलाकों समेत भाबर में 1693 मौन पालकों द्वारा 44925 मौन पालन बाक्सों में 18910 क्विंटल शहद उत्पादन होता है। राज्य में सालाना कुल 21164 क्विंटल शहद उत्पादन होता है। पर्वतीय इलाकों में एपिस सीराना इंडिका जबकि मैदानी व भाबर इलाके में मैलीफेरा मधुमक्खी पालन होता है। ज्योली के 92 ग्रामीणों ने मधुमक्खी पालन को आजीविका बनाया है।  

ज्योली गांव के मौन पालक गए हैं मैदानी इलाकों में

संयुक्त निदेशक के अनुसार ज्योली के मौन पालक बाक्स लेकर आजकल बरेली, बदायूं, कासगंज गए हैं। सरसों, बाजरा समेत अन्य के फूलों में परागण कर मधुमक्खी शहद बनाएगी। यह ग्रामीण अब मार्च में आएंगे। ग्रामीण फार्म मालिकों से संपर्क कर जाते हैं, बदले में उन्हें शहद दे देते हैं।  

क्‍या कहते हैं मौन पालक और ग्राम प्रधान 

ज्‍योली की ग्राम प्रधान शांति भट्ट का कहना है कि ज्योली गांव को कलस्टर के रूप में चिह्निïत करना सराहनीय पहल है। ग्रामीण आत्मनिर्भरता के इस प्रोजेक्ट में सहयोग को लोग बेहद उत्सुक हैं। वहीं मौन पालक शेखर भट्ट ने बताया कि मौन पालन के साथ ही पशुपालन का कलस्टर बनाया जाना चाहिए। आजीविका से संबंधित योजनाओं में पारदर्शिता व विभागों के बीच तालमेल बेहद जरूरी है। 

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