मां पूर्णागिरि का दिव्य प्रकाश देखने वाले पहले अंग्रेज थे जिम कॉर्बेट, अपनी किताब में किया है इसका जिक्र

प्रसिद्ध शिकारी व पर्यावरण प्रेमी जिम कॉर्बेट पहले अंग्रेज थे जिन्होंने प्रसिद्ध पूर्णागिरि मंदिर के समीप दिव्य प्रकाश को देखकर आध्यात्मिक अनुभव की अनुभूति की थी। उन्होंने अपनी किताब टेंपल टाइगर के पूर्णागिरि एंड दी मिस्टीरियस लाइट्स शीर्षक से लिखे लेख में इसका उल्लेख किया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 08:21 AM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 08:21 AM (IST)
मां पूर्णागिरि का दिव्य प्रकाश देखने वाले पहले अंग्रेज थे जिम कॉर्बेट, अपनी किताब में किया है इसका जिक्र
मां पूर्णागिरि का दिव्य प्रकाश देखने वाले पहले अंग्रेज थे जिम कॉर्बेट, अपनी किताब में किया है इसका जिक्र

जागरण संवाददाता, नैनीताल : प्रसिद्ध शिकारी व पर्यावरण प्रेमी जिम कॉर्बेट पहले अंग्रेज थे, जिन्होंने प्रसिद्ध पूर्णागिरि मंदिर के समीप दिव्य प्रकाश को देखकर आध्यात्मिक अनुभव की अनुभूति की थी। उन्होंने अपनी किताब टेंपल टाइगर के पूर्णागिरि एंड दी मिस्टीरियस लाइट्स शीर्षक से लिखे लेख में इसका उल्लेख किया है।

इतिहासकार प्रो. अजय रावत बताते हैं 1930 में जिम कॉर्बेट ने पूर्णागिरि एंड दी मिस्टीरियस लाइट्स लेख लिखा था। यह 1929 में उनके अध्यात्मिक अनुभव की अनुभूति थी। 1929 में जब जिम चम्पावत जिले के तल्लादेश तामली क्षेत्र में आदमखोर का शिकार करने जा रहे थे तो रात को उन्होंने जंगल में विश्राम किया। यह वह स्थान था, जहां से पूर्णागिरि पर्वत सामने नजर आता था।

रात को भोजन करने के बाद आदतन जब वह तंबू से बाहर सिगरेट पीने आए तो उन्होंने सामने एक विचित्र दृश्य देखा। पूर्णागिरि पर्वत पर अचानक दो चार गोल आकार के प्रकाशमय बिंदु ऊपर नीचे तेज गति से दौडऩे लगे। अचानक उनकी संख्या बढऩे लगी और पर्वत में फैलने लगे।

जिम कॉर्बेट ने लिखा है कि, मैंने सोचा यह जंगल की आग है, गर्मी का समय था। अक्सर जंगलों की आज पहाड़ों में सामान्य बात है लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब गोलों का व्यास करीब दो फीट था। वह सब एक ही आकार के थे। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं, इधर-उधर जा रहे थे। कभी कभी धुंधले हो रहे थे। तब समझ में आया कि जंगल की आग नहीं रहस्यमयी विचित्र प्रकाश है। आदमखोर को मारने के बाद जब जिम पूर्णागिरि मंदिर के पुजारी से मिलने गए तो उन्हें घटना से अवगत कराया।

पुजारी ने तुरंत बधाई दी और कहा कि आप पहले अंग्रेज हैं, जिन्होंने पूर्णागिरि का दिव्य प्रकाश देखा है। यह बड़े-बड़े संत ही देख पाते हैं। जिम कॉर्बेट ने इस घटना का उल्लेख अपनी पुस्तक टेंपल टाइगर में विस्तार से किया है। पूर्णागिरि मंदिर चंद शासन काल में बना, जो तीर्थ बना है। यह शक्ति का पुंज माना जाता है। पूर्णागिरि को पुण्य या पर्वतीय देवी, मुक्ति दाता व दुर्गा के रूप में पूजा जाता है।

बिड़ला विद्या मंदिर के विद्यार्थी रहे हैं जिम

प्रो. रावत के अनुसार 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में जन्मे जिम कॉर्बेट फिलेंडर स्मिथ स्कूल (अब बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल) के विद्यार्थी रहे थे। इसी विद्यालय में उनके नाम से आज भी डोरमेट्री है। इसी विद्यालय में पढ़े द्वितीय विश्व युद्ध में गुरिल्ला वॉर फेयर में अदम्य साहस दिखाने वाले मेजर चाल्र्स इस तरह की युद्ध नीति अपनाने वाले पहले व्यक्ति थे। चाल्र्स के साथ ही जिम कॉर्बेट नैनीताल में पैदा हुए और दोनों का द्वितीय विश्व युद्ध में उल्लेखनीय योगदान रहा। एक दूसरे के प्रशंसक होने के बाद भी आपस में कभी नहीं मिल पाए।

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