जापान की मियावाकी तकनीक से दूर होगी घटते जलस्तर की समस्या, जंगल भी होंगे आबाद
जंगलों में घटते जलस्तर को दूर करने के लिए अपनाई जा रही जापान की मियावाकी तकनीक धरातल पर उतरने लगी है।
रुद्रपुर, विनोद भंडारी: जंगलों में घटते जलस्तर को दूर करने के लिए अपनाई जा रही जापान की मियावाकी तकनीक धरातल पर उतरने लगी है। पीपलपड़ाव रेंज में मियावाकी पद्धति से जंगल विकसित करने के बाद टांडा जंगल में भी 95 हजार पौध रोपकर इसकी शुरूआत कर दी गई है। इसके अलावा इससे वन्यजीवों की आबादी में हो रही घुसपैठ में भी कमी आएगी।
तराई के केंद्रीय वन प्रभाग के सभी रेंजों का अधिकांश भूभाग यूकेलिप्टस और पॉपलर से घिरा हुआ है। वन अनुसंधान शाखा की ओर से किए गए शेध में यह बात सामने आई कि यूकेलिप्टस और पॉपलर से मिटटी की उर्वरक क्षमता कम होने के साथ ही भूजल स्तर कम हो रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिए उत्तराखंड वन अनुसंधान शाखा ने ऊधमसिंहनगर के पीपलपड़ाव रेंज में सबसे पहले मियावाकी पद्धति से प्रायोगिक पौधरोपण शुरू किया। इसके तहत झाठी प्रजाति, मध्य वृक्ष प्रजातियों को समूह के रूप् में रोपित किया गया। खरपतवार से पौधों को बचाने के लिए पलवार का कार्य किया गया। वन अधिकारियों के मुताबिक पीपलपड़ाव क्षेत्र में रोपित इस प्रयोग की सफलता के बाद टांडा जंगल के एक हेक्टेयर क्षेत्र में स्थानीय 92 प्रजातियों के 95 हजार पौधे लगाए गए हैं। इन वृक्षों से भू-कटाव और मिटटी की गुणवत्ता में सुधार के साथ ही जंगलों के बीच लगातार कम हो रहे जलस्तर में भी बढ़ोत्तरी होगी। साथ ही वन्यजीवों की आबादी में हो रही घुसपैठ में भी कमी आएगी। इसके लिए वन्यजीवों का ध्यान रखकर ऐसे पौधे भी लगाए जा रहे हैं, जिसे वह पंसद करते हैं।
ये है मियावाकी पद्धति
मियावाकी पद्धति वनरोपण की ही पद्धति है। जिसे जापान के वनस्पतिशास्त्री ने विकसित किया था। इस तकनीक में कम स्थान पर छोटे छोटे पौध रोपे जाते हैं। जो साधारण पौधाें की तुलना में 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं। इस तकनीक से कम समय में जंगलों को घने जंगल में परिवर्तन किया जा सकता है।
विशेषज्ञों की बात
मियावाकी पद्धति से पौधराेपण से जैव विधिवता में इजाफा होगा। जंगलों में कम होते जलस्तर की समस्या भी दूर होगी। पौधों के विकसित होने से वन्यजीव भी आबादी की ओर रूख नहीं करेंगे। पीपलपड़ाव और टांडा जंगल के बाद अन्य क्षेत्रों में भी मियावाकी पद्धति से पौधरोपण किया जाएगा। -मदन सिंह बिष्ट, वन क्षेत्राधिकारी, वन अनुसंधान केंद्र