नौकरी छोड़ मशरूम उत्पादन से स्वावलंबन को जाग्रत कर रहीं ब्रिटेन में शिक्षित जागृति
कुछ लोग मंदी व घाटे से तनाव व हताश होकर अवसाद का शिकार हो उठे हैं। ऐसे में रामनगर की जागृति अपने नाम के मुताबिक लीक से हटकर काम कर रही हैं जाे कि युवाओं में आशा का संचार कर रही हैं। आइए जानते हैं जागृति की जगाने वाली कहानी
विनोद पपनै, रामनगर। कोरोना काल में कई लोगों की नौकरी छूट गई। कुछ लोग मंदी व घाटे से तनाव व हताश होकर अवसाद का शिकार हो उठे हैं। ऐसे में रामनगर की जागृति अपने नाम के मुताबिक लीक से हटकर काम कर रही हैं, जाे कि युवाओं में आशा का संचार कर रही हैं। आइए जानते हैं जागृति की जगाने वाली कहानी-
ग्राम नारायण पुर मूल्या (देवीपुर मूल्या) निवासी जागृति नेगी दिल्ली में नौकरी करती थीं। पर उनका वहां मन नहीं लगता था। वह अपना काम करना चाहती थीं, जिससे उन्हें संतुष्टि मिल सके। इसके लिए उन्होंने अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी। उन्होंने बताया कि उनकी पढ़ाई मैनेजमेंट एंड इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी इंग्लैंड से हुई है। ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने बहुत सारी कम्पनियों में काम किया। इस दौरान अहसास हुआ कि सभी लोग बड़ी कम्पनी में आराम एसी में बैठकर काम करते है। जिससे सूरज की किरण न मिल पाने से उन्हें विटामिन डी की कमी हो जाया करती है। इस वजह से लोग डिप्रेशन, बोन लास, डेमेंटिया जैसे रोग से ग्रसित हो जाया करते हैं। इसलिए इस समस्या के निवारण के लिए उन्होंने काफी रिसर्च किया। उनके प्रोफेसर्स ने बताया कि मशरूम का सेवन शाकाहारी और मांसाहारी दोनों करते हैं। इसमें विटामिन डी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
एक साल तक सीखीं बारीकियां
जागृति कहती है कि उन्होंने दिल्ली में हाईटेक मशरूम ग्रोवर में एक साल का प्रशिक्षण लेकर मशरूम की बारीकियां सीखीं। मशरूम उगाने का प्रशिक्षण उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र उजवा से प्राप्त किया। जागृति कहती है कि उनके पिता आनन्द नेगी व माता दीपा नेगी ने मशरूम उत्पादन के लिए बराबर प्रोत्साहित करते व जानकारी जुटाते। जागृति अभी बटन मशरूम की खेती कर रही है। बटन मशरूम की खेती तीन चरणों मे की जा रही है। व्हाइट बटन मशरूम, क्रेमिनी मशरूम और प्रोटोबेलो मशरूम।
मशरूम का अचार भी
जागृति मशरूम की खेती के साथ उसका अचार भी तैयार कर रहीं हैं। कहती है मार्च में खाद डाल कर मई में मशरूम तैयार होने लगी है। शुरू में पांच किलो का उत्पादन होता था मगर अब डेढ़ सौ किलो का रोजाना उत्पादन हो जाता है।
लोगों को भी रोजगार
जागृति खुद स्वरोजगार कर रही है। इसके साथ ही पचास से अधिक लोगाें को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी दे रहीं हैं। इसी दौरान लाकडाउन आने से बेशक बाजार में मंदी का दौर आया है। पर जागृति ने हार नहीं मानी उन्होंने डोर टू डोर होम डिलीवरी शुरू करते हुए अपना बाजार खुद बनाना शुरू कर दिया है।
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