फरियादी कहीं का भी हो समस्या के समाधान के लिए तुरंत अधिकारी को फोन लगाती थीं इंदिरा हृदयेश

इंदिरा के निधन की सूचना पर समर्थकों और शहर के लोगों का नैनीताल रोड स्थित उनके आवास संकलन पर जुटना शुरू हो गया था। इसमें आम और खास सभी थे। पास की बस्ती से भी कुछ महिलाएं मुंह ढक पहुंची थी। मगर चेहरे नए नहीं थे।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 06:15 AM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 06:15 AM (IST)
फरियादी कहीं का भी हो समस्या के समाधान के लिए तुरंत अधिकारी को फोन लगाती थीं इंदिरा हृदयेश
फरियादी कहीं का भी हो समस्या के समाधान के लिए तुरंत अधिकारी को फोन लगाती थीं इंदिरा हृदयेश

हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : इंदिरा के निधन की सूचना पर समर्थकों और शहर के लोगों का नैनीताल रोड स्थित उनके आवास 'संकलन' पर जुटना शुरू हो गया था। इसमें आम और खास सभी थे। पास की बस्ती से भी कुछ महिलाएं मुंह ढक पहुंची थी। मगर चेहरे नए नहीं थे। यह वो महिलाएं थी जो अक्सर अपनी परेशानी लेकर नेता प्रतिपक्ष के घर पहुंचती थी। भले आर्थिक परेशानी हो या कुछ और लेकिन समाधान जरूर होता था। अपनेपन की यह परंपरा सभी के लिए थी। इसलिए हल्द्वानी में लोगों को किसी तरह की दिक्कत आने पर हर कोई एक हीं सुझाव देता था कि इंदिरा दीदी के घर चले जाओ। कुछ न कुछ मदद जरूर मिलेगी। लेकिन अब वो मददगार चेहरा नहीं रहा। इसलिए घर के आसपास और सड़क पर खड़े हर शख्स के चेहरे पर गम का माहौल साफ झलक रहा था।

उत्तराखंड में नौकरशाही के बेलगाम होने का मुद्दा अक्सर सुर्खियों में रहता है। वर्तमान सरकार के मंत्री और विधायक तक यह बात सार्वजनिक तौर पर स्वीकर कर चुके हैं। लेकिन इंदिरा जब-जब सत्ता में रही तो नौकरशाही पर लगाम भी कसी। उनके मंत्रालय से जुड़े अधिकारी जनहित से जुड़े किसी काम को लेकर लोगों को परेशान नहीं करते थे। क्योंकि, पता था कि अगर बेवजह का अड़ंगा डाला तो फरियादी सीधा डा. इंदिरा के पास पहुंचेगा। फिर क्लास लगने में वक्त नहीं लगेगा। हालांकि, शिक्षिका रह चुकी इंदिरा ने डांटने की बजाय हमेशा शालीन और सरल शब्दों में अफसरों को समझाया कि किसी परेशान को और परेशान मत करना। इधर, नौकरशाह भी उनकी ताकत को समझते थे। इसलिए विकास से जुड़े मामलों को प्राथमिकता से लेते थे। यही वजह है कि सत्ता से विपक्ष का हिस्सा बनने पर भी व्यक्तिगत, सामाजिक, व्यापारिक और कर्मचारी संगठन भी अपनी समस्या को लेकर पहले उनके दरवाजे पर पहुंचते थे।

डीएम फिर सचिव को लगा फोन

सुबह तैयार होने के बाद अगर नेता प्रतिपक्ष को कहीं जाना नहीं है तो वह अपने आवास में लोगों के लिए उपलब्ध रहती थी। इस दौरान अगर कोई व्यक्तिगत या संगठन से जुड़ी समस्या लेकर आता था तो वह सीधा पूछा करती थी कि कहां दिक्कत आ रही है। उसके बाद सीधा अपने जनसंपर्क अधिकारी से कहती कि पहले डीएम और फिर इस विभाग के सचिव को फोन लगा। मुख्य सचिव व सीएम को फोन लगने में भी सेकेंड लगता था।

बगैर सुर्खियों के मदद

पिछले साल लॉकडाउन में जब लोगों के सामने भोजन का संकट खड़ा हुआ तो कई संगठन मदद को आगे आए। इनमें से अधिकांश को नेता प्रतिपक्ष द्वारा आर्थिक व संसाधनों के तौर पर मदद की। ताकि लोगों तक राहत पहुंच सके। हालांकि, इस मदद को उन्होंने सार्वजनिक करना बेहतर नहीं समझा। वहीं, कोविड कफ्र्यू के दौरान बेटे सुमित हृदयेश मरीजों और असहायों की मदद में दिन-रात जुटे रहे।

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