चांद व सूरज तक पहुंचेगा भारत : अगले माह चंद्रयान-2 की शुरू हो सकती है उल्टी गिनती

अब चांद व सूरज हमारी पकड़ से दूर नहीं होगा। अगले माह देश में चंद्रयान-2 की उल्टी गिनती शुरू होने जा रही है जबकि सूरज के करीब पहुंचने के लिए मिशन आदित्य के प्रक्षेपण किए जाने की तैयारियां भी जोरों पर चल रही हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 21 Apr 2019 12:09 PM (IST) Updated:Mon, 22 Apr 2019 12:12 AM (IST)
चांद व सूरज तक पहुंचेगा भारत : अगले माह चंद्रयान-2 की शुरू हो सकती है उल्टी गिनती
चांद व सूरज तक पहुंचेगा भारत : अगले माह चंद्रयान-2 की शुरू हो सकती है उल्टी गिनती

रमेश चंद्रा, नैनीताल। अब चांद व सूरज हमारी पकड़ से दूर नहीं होगा। अगले माह देश में चंद्रयान-2 की उल्टी गिनती शुरू होने जा रही है, जबकि सूरज के करीब पहुंचने के लिए मिशन आदित्य के प्रक्षेपण किए जाने की तैयारियां भी जोरों पर चल रही हैं। शनिवार को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने देवस्थल स्थित आर्यभटट् प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) में दैनिक जागरण को बातचीत में बताया कि चंद्रयान-2 की सफलता देश की भावी अंतरिक्ष योजनाओं को बल प्रदान करेगी। इसके साथ ही मिशन आदित्य को सूरज के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण मिशन माना जा रहा है। दोनों मिशन को लेकर भारतीय वैज्ञानिक को उम्मीदें हैं कि इस कीर्तिमान के साथ खगोलीय अध्ययन के नए द्वार खुलेंगे। भारत दुनिया की कई बड़ी परियोजनाओं में भागीदारी कर रहा है।

दुनिया की सबसे बड़ी 30 मीटर व्यास की ऑप्टिकल टेलीस्कोप के निर्माण में भारत दस फीसदी का भागीदार है। इस मिशन में विश्व के पांच देश शामिल हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रेडियो टेलीस्कोप में भी भारत हिस्सेदारी कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस टेलीस्कोप का नाम स्क्वायर किलोमीटर एरे एसकेए है। इस परियोजना में विश्व के दस देश शामिल हैं, जिनमें भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड, स्पेन, दक्षिणी अफ्रीका, स्वीडन हैं। उनका मानना है कि आइंस्टीन के सिद्धांत के अलावा बिग बैग के बाद तारों व आकाशगंगाओं के निर्माण समेत खोज की दुनिया में मिशन एसकेए महत्वपूर्ण मिशन साबित होगा। इस परियोजना को धरातल पर लाने में कई साल लग जाएंगे। स्पेस साइंस में भारत दुनिया के टॉप पांच देशों की श्रेणी में खुद को स्थापित करने में कामयाब हो चुका है। इस कामयाबी को आगे ले जाने का जिम्मा देश के युवाओं के कंधों पर होगा। इसके लिए उन्हें गूगल पर हॉलीवुड के सितारों की जगह आसमान के असली तारों पर नजर रखनी होगी।

हबल को टक्कर दे रहा एस्ट्रोसेट

इसरो के एस्ट्रोसेट के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले महशूर वैज्ञानिक प्रो. पीसी अग्रवाल ने कहा कि एस्ट्रोसेट नासा के अंतरिक्ष टेलीस्कोप हबल की तरह परिणाम दे रहा है। यह सफलता देश के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें जरा भी संदेह नहीं कि खोज के क्षेत्र में एस्ट्रोसेट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि सीमित साधनों के बावजूद भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अद्वितीय कामयाबी हासिल कर रहा है, जबकि सुविधाओं में अमेरिकी व यूरोपीय देशों की तुलना में भारत कहीं पीछे है। सिर्फ 70 सालों के दौरान देश यहां तक पहुंच पाया है, जबकि विकसित देशों का सफर हमसे कई कहीं पुराना है।  

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