चम्पावत में कत्यूरी शासकों की बनाई गई मड़य्या उपेक्षित, यात्री करते थे विश्राम

प्राचीन काली कुमाऊं की सिप्टी पट्टी के आने वाले गांव गड़कोट के समीप कत्यूरी चंद शासकों द्वारा बनाई गई विश्राम शाला पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। मड़य्या को स्थानीय भाषा मे पांथशाला अथवा धरमघरों के रूप में भी जाना जाता हैं।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 09:30 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 09:30 PM (IST)
चम्पावत में कत्यूरी शासकों की बनाई गई मड़य्या उपेक्षित, यात्री करते थे विश्राम
यह इमारत पर्यटक की दृष्टि के काफी महत्वपूर्ण है।

जागरण संवाददाता, चम्पावत : चंद शासकों की प्रारंभिक राजधानी पौराणिक कूर्मनगरी चम्पावत में चंद एवं उनके पूर्ववर्ती कत्यूरी शासकों द्वारा अपनी प्रजा के कल्याण हेतु कई रचनात्मक कार्य किए। प्रशासनिक योजनाओं के साथ धरातल पर भी उनके द्वारा किए गए लोक कल्याणकारी आज भी देखे जा सकते हैं, लेकिन प्रशासन और पर्यटन विभाग द्वारा इनकी सुध न लिए जाने से कई प्राचीन निर्माण कार्य खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। इन्हीं में से एक है मड़य्या अर्थात विश्राम शाला।

प्राचीन काली कुमाऊं की सिप्टी पट्टी के आने वाले गांव गड़कोट के समीप कत्यूरी चंद शासकों द्वारा बनाई गई विश्राम शाला पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। मड़य्या को स्थानीय भाषा मे पांथशाला अथवा धरमघरों के रूप में भी जाना जाता हैं। 12 विशाल खंभों पर आधारित इस विशिष्ट स्थापत्य के नमूने में छत गोल छतरीनुमा हैं। इस इमारत को एक विशाल चबूतरे पर बनाया गया था। इसे प्राचीन पैदल मार्ग में राहगीरों के आराम करने के साथ धूप, बारिश, ओलावृष्टि तथा अन्य आपदाओं से बचने के लिए बनाया गया था। यह इमारत स्थानीय बलुआ पत्थरों से बनाई गई है। यह बेहतरीन स्थापत्य कला का नमूना है। पर्यटन की दृष्टि से यह इमारत कफीमहत्वपूर्ण है। लेकिन देखरेख व संरक्षण के अभाव में यह लगातार क्षतिग्रस्त होती जा रही है। इस मड़य्या को पैदल मार्ग में राहगीरों के आराम करने के साथ धूप, तेज बारिश, ओलावृष्टि तथा अन्य आपदाओं से बचने के लिए बनाया गया था।

वर्तमान समय मे कुछ स्तम्भ गायब हो चुके हैं और छत पूर्णत: क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इमारत के अवशेष इसी इमारत के अहाते में उपेक्षित पड़े हुए हैं। अगर समय रहते इनके संरक्षण का प्रयास नहीं किया गया तो वह दिन दूर नही जब पूरी इमारत ही ध्वस्त हो जाएगी। उल्लेखनीय बात हैं कि जिस रास्ते मे यह बेहतरीन स्थापत्य का नमूना मौजूद हैं वो रास्ता चम्पावत के प्रमुख पावन धामों में से एक सप्तेश्वर महादेव को जाता हैं । इसी के समीप स्थानीय ग्रामवासियों के लोक पूजित त्योंदर देवता का मंदिर एवं पवित्र जलाशय त्यून्द्रा ताल भी स्थित हैं।

खटीमा पीजी कॉलेज में इतिहास विभाग के प्राध्यापक डा. प्रशांत जोशी ने बताया कि सिप्टी क्षेत्र में स्थित सुंदर एवं विशाल जलप्रपात का रास्ता भी इसी मार्ग से जाता हैं। बताया कि यह इमारत पर्यटक की दृष्टि के काफी महत्वपूर्ण है। इतिहास व संस्कृति प्रेमियों के साथ शोधार्थियों के लिए भी यह अध्ययन का विषय भी बन सकती हैं। डा. जोशी ने बताया कि ठीक इसी प्रकार के स्थापत्य कला के अवशेष हिंगला देवी क्षेत्र के समीप एवम कोतवाली चबूतरे में भी मौजूद हैं।

क्या कहते हैं अफसर

जिला पर्यटन अधिकारी लता बिष्ट ने बताया कि पुरातत्व विभाग के साथ समन्वय बनाकर चंद शासकों के समय बनी धरोहरों को संरक्षित किया जा रहा है। अब तक कई ऐतिहासिक एवम धार्मिक स्थलों को संरक्षित कर उनके आस-पास पर्यटन सुविधाएं विकसित की गई हैं। शीघ्र अन्य धरोहरों को भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाएगा।

खटीमा पीजी कालेज के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. प्रशांत जोशी ने बताया कि चम्पावत जिले में चंद और कत्यूरी शासकों ने प्रजा की भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। शासकों द्वारा बनाए गए नौले धारों के साथ बेजोड स्थापत्य कला के मंदिर एवं अन्य भवन आज भी देखे जा सकते हैं। चंद शासकों द्वारा बनाई गई मड़य्या भी अपने आप में अनुपम है। इस प्रकार की धरोहरों को संरक्षित कर उनके आस-पास पर्यटकों की सुविधा के लिए जरूरी चीजों का निर्माण किया जाना जरूरी है।

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