दुनिया की भागदौड़ से बहुत दूर शांत और शुद्ध प्राकृतिक वातावरण चाहते हैं तो आइए लोहाखाम-हरीशताल झील

हल्द्वानी से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोहाखाम ताल आज भी शहरी शोरशराबे की जिंदगी से अछूता है इसलिये इस ताल का अपना ही अलग सौंदर्य है। विकासखंड ओखलकांडा के चौगड़ पट्टी का पवित्र कुंड की मान्यता हरिद्वार के बराबर मानी गयी है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 10:25 AM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 10:25 AM (IST)
दुनिया की भागदौड़ से बहुत दूर शांत और शुद्ध प्राकृतिक वातावरण चाहते हैं तो आइए लोहाखाम-हरीशताल झील
अंग्रेज कई किमी पैदल चलकर यहां पहुंचते और रात्रि विश्राम के लिये वहां कोठी भी बनाई थी।

जागरण संवाददाता, भीमताल : विकासखंड ओखलकांडा भले ही नैनीताल जनपद के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आता हो पर यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। हल्द्वानी से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोहाखाम ताल आज भी शहरी शोरशराबे की जिंदगी से अछूता है इसलिये इस ताल का अपना ही अलग सौंदर्य है। विकासखंड ओखलकांडा के चौगड़ पट्टी का पवित्र कुंड की मान्यता हरिद्वार के बराबर मानी गयी है। कुंड के आस पास के क्षेत्रों के लोग जनेऊ संस्कार आदि यहां करते हैं।

हर वर्ष बैशाखी पूर्णिमा की रात  यहां मेले का आयोजन अपने आप में इसकी विशिष्ट पहचान है। इस दौरान रात को मेले के बाद सुबह के समय पवित्र कुंड में स्नान कर जागर लगाकर लोहाखाम देवता का आहवान किया जाता है और कुंड से लगभग आधा किमी की दूरी पर स्थित स्योत्रा में लोहाखाम मंदिर में विधिवत रूप से पूजा अर्चना की जाती है। लोहाखाम मंदिर के पुजारियों के द्वारा पूरे क्षेत्र से लाई गयी नई फसल का भोग लोहाखाम देवता को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद वितरण होता है। लोहाखाम ताल झील विकासखंड के हरीशताल ग्राम सभा में स्थित है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर यह नंधौर सैंचुरी से लगा हुआ है।

बड़ा रोचक है इस झील के बनने की कहानी

बुजुर्ग बताते हैं कि लोहाखाम मंदिर में पूजा अर्चना करते समय पानी की कमी हो गयी तो उस समय पुजारी के द्वारा एक लोटा जल सहित मंदिर से इस स्थान में फेंका गया और फिर इस स्थान में कुंड और झील बन गयी तब से ही इस झील का नाम लोहाखाम ताल पड़ गया। इसी झील से आधा किमी की दूरी पर इसी ग्राम पंचायत की हरीशताल झील भी है।

अंग्रेजों की निशानी झूला आज भी मौजूद

लोहाखाम के स्योत्रा मंदिर में अंग्रेजों के द्वारा लगाया झूला आज भी मंदिर के पास स्थित है। इस झूले को अंग्रेजों ने वहां क्यों लगाया इसका कोई प्रमाण नहीं मिला पर झूले की लंबाई काफी अधिक है।  इसी क्षेत्र में अंग्रेजों ने एक को ठी का निर्माण भी कराया था। वहीं बताते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में काफी अंग्रेज इस झील का नजारा लेने के लिये वहां आते थे। अंग्रेज लोग कई किमी पैदल चलकर यहां पहुंचते और झील का आनंद उठाते रात्रि विश्राम के लिये वहां कोठी भी बनाई थी।

पूर्व ग्राम प्रधान केडी रुबाली ने बताया कि शासन प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिये यदि क्षेत्र में पर्यटन की योजनाओं को लागू किया जाये तो निश्चित रूप से जो क्षेत्र में स्थानीय लोंगों और युवकों का पलायन है उसको रोका जा सकेगा। ट्रैकिंग का यह महत्वपूर्ण स्थल बन सकता है।

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