कीड़ा जड़ी के विज्ञानी संरक्षण से सुरक्षित रहेगी हिमालय की सेहत
डीआरडीओ के सेवानिवृत्त विज्ञानी डा. पीएस नेगी ने कीड़ा जड़ी के तैयार होने इसके संरक्षण और संचयन की विज्ञानी तकनीक से प्रतिभागी ग्रामीणों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि अविज्ञानी ढंग से कीड़ा जड़ी का विदोहन इसके अस्तित्व के साथ ही हिमालयी जैव विविधता के लिए खतरा हो सकता है।
जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : उच्च हिमालय में पाई जाने वाली यारसा गुम्बा(कीड़ा जड़ी)को संरक्षित किए जाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। सिक्योर हिमालय परियोजना में आयोजित कार्यशाला में विज्ञानियों ने संरक्षण के साथ इसके संचयन की दरकार बताई है।
धारचूला में आयोजित कार्यशाला में डीआरडीओ के सेवानिवृत्त विज्ञानी डा. पीएस नेगी ने कीड़ा जड़ी के तैयार होने, इसके संरक्षण और संचयन की विज्ञानी तकनीक से प्रतिभागी ग्रामीणों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि अविज्ञानी ढंग से कीड़ा जड़ी का विदोहन इसके अस्तित्व के साथ ही हिमालयी जैव विविधता के लिए खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को विज्ञानी तौर तरीके से इसका संरक्षण और संचयन करना होगा।
डा.सचिन बोहरा ने कीड़ा जड़ी के सतत प्रबंधन और उपयोग के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कीड़ा जड़ी के आर्थिक और सामाजिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके विदोहन के लिए विज्ञानी तौर तरीके जरू री हैं। डा.प्रदीप पांडेय ने कीड़ा जड़ी विदोहन के लिए उत्तराखंड सरकार की पालिसी के साथ ही नेपाल, भूटान, चीन और सिक्कित में अपनाई जा रही पालिसी की जानकारी दी। कार्यशाला में मनोज जोशी, वन क्षेत्राधिकारी सुनील कुमार, यूएनडीपी के प्रतिनिधि भाष्कर जोशी, मनोज जोशी, नितिन बोहरा, किशन बोनाल, रवि दुग्ताल आदि मौजूद रहे। कार्यशाला का संचालन संस्था सदस्य नितिन बोहरा ने किया।
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