होली गायकी की जमी महफिल, नटवर नागर कृष्ण मुरारी तुम जीते हम हारी.. जैसे होली गीतों पर झूमे होल्यार

पौष के पहले रविवार से शुरू हुए होली गायन का दूसरा चरण शुरू हो गया है। हिमालय संगीत शोध समिति जेकेपुरम में रविवार को दूसरे दौर की कार्यशाला शुरू हो गई। बड़ी संख्या में होली रसिक कार्यक्रम में शामिल हुए।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 17 Jan 2021 12:15 PM (IST) Updated:Sun, 17 Jan 2021 12:15 PM (IST)
होली गायकी की जमी महफिल, नटवर नागर कृष्ण मुरारी तुम जीते हम हारी.. जैसे होली गीतों पर झूमे होल्यार
होली गायकी की जमी महफिल, नटवर नागर कृष्ण मुरारी तुम जीते हम हारी.. जैसे होली गीतों पर झूमे होल्यार

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : पौष के पहले रविवार से शुरू हुए होली गायन का दूसरा चरण शुरू हो गया है। हिमालय संगीत शोध समिति जेकेपुरम में रविवार को दूसरे दौर की कार्यशाला शुरू हो गई। बड़ी संख्या में होली रसिक कार्यक्रम में शामिल हुए। ताल शिरोमणि पं. शीतल प्रसाद मिश्र के परिकल्पना पेज लय लोक संगीत साधना के माध्यम से आयोजन का आयोजन का सजीव प्रसारण किया गया।

कार्यक्रम संचालन तालमणि भरत कुमार मिश्र, तकनीकी संचालन शुभम पोखरिया व सुरेंद्र मेहरा ने किया। संगीतज्ञ डा. पंकज उप्रेती के साथ तबले पर आचार्य धीरज उप्रेती, आशुतोष उप्रेती, हारमोनियम पर शुभम मठपाल ने साथ दिया। इस दौरान पंकज जोशी, लोकेश कुमार, मयंक भट्ट, कमलेश सिंह मेहरा आदि ने होली गायन किया। 

इन होली गीतों की हुई प्रस्तुति 

राग पीलू पर आधारित रचना इस प्रकार थी-गोकुल गांव का छलिया छोरा, अपने ही रंग इतराये। रंग को रंगीलो, हठ को हठीलो, ऐंठो-एऐंठो जाय। अपने... को काफी पसंद किया गया। काफी राग में प्रस्तुति- नटवर नागर कृष्ण मुरारी, तुम जीते हम हारी, मैं जल जमुना भरन गई थी, मुंह में केशर वोरी.. पर रसिक खूब झूमे। राग जंगलाकाफी में कर्णप्रिय रचना हुई- राध नन्दकुंवर समझाय रही, होरी खेलो फागुन ऋतु आई रही। राग देश में चलो री चलो सखी नीर भरन को, तट जमुना की ओर। अगर चंदन को झुलना पड़ो है, रेशम लागी डोर पर झूमते हुए गायन किया गया।

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