हाईकोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों की सेलेरी के मामले सरकार को जमकर फटकारा, कहा 170 करोड़ जुटाओ या वित्तीय आपातकाल घोषित कर दो

हाई कोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों की वेतन से संबंधित याचिका पर विशेष सुनवाई करते हुए न केवल सरकार को आईना दिखाया बल्कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग का हवाला देकर खूब खरी-खरी भी सुना दी। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक बीमारी का उपचार दर्द निवारक से नहीं हो सकता।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 27 Jun 2021 08:16 AM (IST) Updated:Sun, 27 Jun 2021 08:16 AM (IST)
हाईकोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों की सेलेरी के मामले सरकार को जमकर फटकारा, कहा 170 करोड़ जुटाओ या वित्तीय आपातकाल घोषित कर दो
170 करोड़ जुटाओ या वित्तीय आपातकाल घोषित कर दो : हाईकोर्ट

किशोर जोशी, नैनीताल : हाई कोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों की वेतन से संबंधित याचिका पर विशेष सुनवाई करते हुए न केवल सरकार को आईना दिखाया बल्कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग का हवाला देकर खूब खरी-खरी भी सुना दी। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक बीमारी का उपचार दर्द निवारक दवा से नहीं हो सकता। कर्मचारी भूखे मर रहे हैं, इससे ज्यादा आपात स्थिति और नहीं हो सकती। अगर आपको स्थिति की गंभीरता का एहसास नहीं है तो आइएएस अफसरों का वेतन रोककर दिखाएं, तभी ये महसूस करेंगे। रोडवेज पर सीधे सरकार का नियंत्रण नहीं होने की महाधिवक्ता की दलील पर कोर्ट ने कहा कि जब निगम में अधिकारी सरकार नियुक्त करती है, राजनीतिक फायदा निगम से सरकार लेती है, नियंत्रण सरकार का है तो सरकार जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। यदि रोडवेज कर्मचारियों को वेतन देने में वित्तीय स्थिति खराब होती है तो सरकार पहले तो दिसंबर 2021 तक वेतन भुगतान का प्लान पेश करे, या फिर वित्तीय आपातकाल घोषित कर दो।

शनिवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान की अध्यक्षता वाली विशेष खंडपीठ ने वेतन मामले में हीलाहवाली पर मुख्य सचिव समेत अन्य अफसरों की जमकर क्लास ली। वित्त सचिव ने कोर्ट को बताया कि सरकार के पास कैश नहीं है, और कंटीजेंसी फंड से पांच सौ करोड़ खर्च किया जा सकता है। यदि रोडवेज को बजट दिया गया औरों को नहीं, तो दिक्कत होगी। कोर्ट ने कहा कि कोविड काल में रोडवेज कर्मचारियों ने सेवाएं दी, अब उनका परिवार मुसीबत में है तो आपकी संवेदनशीलता दिखाई नहीं दे रही है। आजीविका का अधिकार मौलिक अधिकार है मगर जो सरकार कर रही है वह बंधुआ मजदूरी की श्रेणी में आता है और यह देश में अपराध है। सुप्रीम कोर्ट में बिहार के हिन्दोरानी के केस का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई कर्मचारी वेतन नहीं मिलने से सुसाइड करता है तो सरकार जिम्मेदार होगी। कर्मचारियों का जीने लायक स्तर बनाना सरकार का नैतिक दायित्व है। राज्य कर्ता की भूमिका में है और परिवार के हर सदस्य का ध्यान रखने के लिए ही सरकार को चुना जाता है।

कर्मचारी गलत रास्ते पर गए तो आप जिम्मेदार होंगे

अफसरों के खराब वित्तीय हालात का जिक्र करने पर खंडपीठ ने खरगोश की कहानी सुनाई। कहा, मादा खरगोश जब बच्चों के लिए खाने का इंतजाम नहीं कर पाती तो अपने फर निकालकर देती है। अब यदि कर्मचारी गलत रास्ते पर गए तो आप जिम्मेदार रहेंगे। आप कोर्ट में वित्तीय बहाना बना रहे हो और राजनीतिक नुकसान की वजह से पब्लिक में स्वीकार नहीं करते। सरकार से कहा कि दो दशक में आपके अधिकारी परिसंपत्तियों का बंटवारा नहीं कर सके। सरकार बंधुआ मजदूरी कराए यह कोर्ट बर्दास्त नहीं करेगी। कोर्ट ने दिसंबर तक के वेतन के लिए 170 करोड़ का इंतजाम करने के निर्देश दिए। कहा कि इस पर निर्णय लेना कोर्ट का नहीं सरकार का काम है। सरकार को कर्मचारियों का दर्द समझकर निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ने निर्णय लेने के लिए 15 दिन का समय देने की दलील भी सिरे से खारिज कर दी। साथ ही कहा कि यदि सरकार को कोर्ट के निर्देश से आपत्ति है तो सुप्रीम कोर्ट जाने के रास्ते खुले हैं।

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