हाईकोर्ट ने कहा आपराधिक अवमानना के लिए महाधिवक्ता की अनुमति जरूरी नहीं highcourt

हाई कोर्ट ने शनिवार को चर्चित आइएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी के मामले में साफ किया है कि कैट चेयरमैन के खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिका के लिए महाधिवक्ता की अनुमति-सहमति जरूरी नहीं है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 12 Aug 2019 11:16 AM (IST) Updated:Mon, 12 Aug 2019 11:16 AM (IST)
हाईकोर्ट ने कहा आपराधिक अवमानना के लिए महाधिवक्ता की अनुमति जरूरी नहीं highcourt
हाईकोर्ट ने कहा आपराधिक अवमानना के लिए महाधिवक्ता की अनुमति जरूरी नहीं highcourt

नैनीताल, जेएनएन : हाई कोर्ट ने शनिवार को चर्चित आइएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी के मामले में साफ किया है कि कैट चेयरमैन के खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिका के लिए महाधिवक्ता की अनुमति-सहमति जरूरी नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष याचिका दायर करने की अनुमति प्रदान की है। कोर्ट के इस फैसले से कैट चेयरमैन के खिलाफ आपराधिक अवमानना का रास्ता साफ हो गया है। 

मामले की शुरूआत पिछले साल सात सितंबर को हुई थी। हाई कोर्ट ने कैट चेयरमैन को अवमानना नोटिस जारी किया था। कैट चेयरमैन जस्टिस एल नरसिंहन रेड्डी ने अपने लिखित आदेश में हाई कोट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि कोर्ट का आदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल अधिनियम-1985 की धारा-25 के विरुद्ध है। साथ ही यह भी कहा था कि हाई कोर्ट ने बिना एम्स का पक्ष सुने आदेश पारित किया था जबकि उच्च न्यायालय की रिकार्ड सीट में साफ अंकित किया गया था कि सुनवाई के दौरान असिस्स्टेंट सॉलीसिटर जनरल द्वारा केंद्र के साथ एम्स नई दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया था। कैट चेयरमैन ने इस बात पर सवाल उठाया था कि उनके द्वारा दिल्ली में पारित आदेश के विरुद्ध सुनवाई उत्तराखंड उच्च न्यायालय में कैसे की गई। यह भी कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासनिक न्यायाधीकरण अधिनियम 1985 की धारा-25 हाई कोर्ट की जानकारी में नहीं लाई गई। कैट चेयरमैन ने हाई कोर्ट के इस स्पष्टï आदेश के बाद कि आइएफएस संजीव के एसीआर मामले की सुनवाई कैट की नैनीताल बैंच में होगी और इस मामले के दिल्ली ट्रांसफर करने की याचिका को खारिज ना कर अपने पास सुनवाई के लिए लंबित रखा। 

इन टिप्पणियों को आपराधिक अवमानना की श्रेणी में मानते हुए संजीव ने याचिका दाखिल करने के लिए इसी साल मार्च में महाधिवक्ता से अनुमति मांगी। कोर्ट की अवमानना से संबंधित अधिनियम की धारा-15 में यह साफ प्रावधान है कि आपराधिक अवमानना याचिका बिना महाधिवक्ता की सहमति के हाई कोर्ट में दाखिल नहीं की जा सकती है। दो जुलाई को महाधिवक्ता ने यह कहते हुए अनुमति देनेेसे इनकार कर दिया कि उनकी नजर में पूरे मामले में कोई आपराधिक अवमानना का केस नहीं बनता। साथ ही इसी मामले में सिविल अवमानना को लेकर दायर वाद सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। महाधिवक्ता के इस इस आदेश को संजीव द्वारा याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई।  याचिका में एजी के आदेश को रद करते हुए आपराधिक अवमानना याचिका न्यायालय में दाखिल करने की अनुमति देने की प्रार्थना की। वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने अवमानना याचिका की अनुमति देते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में आपराधिक अवमानना की याचिका सीधे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष दाखिल की जा सकती है, जो कि उस पर उचित निर्णय लेंगे। 

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