Harela : कुमाऊं भर में पूजा गया प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला, घरों में बने पकवान

प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला लोक पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हरेले के साथ ही कुमाऊं में श्रावण मास और वर्षा ऋतु का भी आरंभ हो गया।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 16 Jul 2020 09:33 AM (IST) Updated:Thu, 16 Jul 2020 09:33 AM (IST)
Harela : कुमाऊं भर में पूजा गया प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला, घरों में बने पकवान
Harela : कुमाऊं भर में पूजा गया प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला, घरों में बने पकवान

हल्द्वानी, जेएनएन : जी रये जागि रये, यो दिन-बार भेटनै रये। धरती जस अगाव, आकाश जस चकव होये, सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो। दूब जस पंगुरिये। हिमालय में ह्यो, गंगा में पाणी रौन तक बचि रये..। इसी आशीर्वचन के साथ गुरुवार को कुमाऊं भर के घरों में हरेला पूजन किया गया।

प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला लोक पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हरेले के साथ ही कुमाऊं में श्रावण मास और वर्षा ऋतु का भी आरंभ हो गया। हरेले के तिनके ईष्टदेव को अर्पित कर धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की कामना की गई। घरों में पकवान बनाए गए। इससे पहले बुधवार शाम घरों में मिट्टी के शिव, पार्वती, गणेश बनाकर डेकर पूजन की परंपरा निभाई गई।

हरेले को पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर नौ दिन पहले दो बर्तनों में बोया जाता है। जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। सूर्य की सीधी रोशन से दूर होने से हरेला यानी अनाज की पत्तियां पीला रंग लिए होती हैं। श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि पीला रंग उन्नति व संपन्नता का द्योतक है। हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में मधुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं। इस दौरान कई जगह पौधारोपण भी किया जा रहा है। मान्यता है कि हरेले के दिन टहनी को भी मिट्टी में लगा देने से वह जड़ देकर जम जाती है।

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