550वां प्रकाशपर्व : मानवता का संदेश देने कुमाऊं आए थे गुरुनानक nainital news

समूचा सिख समाज मंगलवार (आज) को गुरुनानक देव का 550वां प्रकाशपर्व मनाने जा रहा है। गुरुद्वारों में विशेष आयोजन हो रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 12 Nov 2019 10:32 AM (IST) Updated:Tue, 12 Nov 2019 10:32 AM (IST)
550वां प्रकाशपर्व : मानवता का संदेश देने कुमाऊं आए थे गुरुनानक nainital news
550वां प्रकाशपर्व : मानवता का संदेश देने कुमाऊं आए थे गुरुनानक nainital news

हल्द्वानी, गणेश पांडे : समूचा सिख समाज मंगलवार (आज) को गुरुनानक देव का 550वां प्रकाशपर्व मनाने जा रहा है। गुरुद्वारों में विशेष आयोजन हो रहे हैं। समाज को एकजुटता, भाईचारा व समानता का पैगाम देने वाले गुरुनानक देव का कुमाऊं से भी गहरा जुड़ाव रहा है। सिखों के पहले गुरु नानक देव ने कुमाऊं के कई स्थानों पर पैदल यात्रा कर 'किरत करो, नाम जपो, वंड छको' यानी नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं का उपदेश दिया। नानक जाति बंधन के भी सख्त खिलाफ थे।

गुरुनानक देव ने 1514 में करतारपुर से अपनी तीसरी उदासी (धर्म प्रचार यात्रा) शुरू की। कलानौर, कांगड़ा, कुल्लू, देहरादून होते हुए नानक देव अल्मोड़ा, रानीखेत, नैनीताल, नानकमत्ता पहुंचे थे। गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब का प्राचीन नाम गोरखमत्ता था। गुरुनानक देव के यहां आने के बाद नाम नानकमत्ता साहिब हो गया। गुरुनानक देव का मत था कि ईश्वर की साधना शरीर पर राख मलकर व भांग-धतूर का सेवन करने के दिखावे से नहीं हो सकती। परिवार की सेवा ही सबसे सच्ची ईश्वरीय सेवा है। इसलिए घर-गृहस्थी व परिवार के बीच रहकर सच्चे मन ने ईश्वर की अर्चना करो। गुरुनानक देव की नजर में सच्चा योगी वह है जो एक दृष्टि से सभी प्राणियों को समान जानता है। नानकमत्ता में कुछ योगियों के पूछने पर नानक देव ने खुद को मन, वचन व कर्म से सत्य का शिष्य बताया था। कहा जाता है कि नानकमत्ता में गुरुनानक देव ने पीपल के सूखे वृक्ष के नीचे आसन लगाया, उनके प्रभाव से सूखा वृक्ष हरा हो गया। आज जिसे पीपल साहिब के नाम से जाना जाता है। नानकमत्ता साहिब में दूध का कुआं भी नानक देव की आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ा बताया जाता है।

जब मीठे स्वाद में बदल गया कड़वा रीठा

चम्पावत के रीठासाहिब गुरुद्वारा में भी गुरुनानक देव के चरण पड़े थे। यात्रा के दौरान नानक देव अपने दो शिष्यों के साथ यहां आए थे। कहा जाता है तब उनके शिष्य मरदाना ने भूख लगने की बात कही। नानक देव ने रीठा के फल तोड़कर खाने की सलाह दी। गुरुनानक देव की दिव्य दृष्टि से कड़वा रीठा मीठा हो गया। तब से इस स्थान का नाम रीठासाहिब पड़ गया। आज भी यहां प्रसाद में रीठा फल बांटा जाता है।

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