Guru Purnima 2021 : गुरु के प्रति आस्था प्रकट करने का पर्व, गुरु को देवों के समान बताया गया है श्रेष्ठ
Guru Purnima 2021 आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार 23 जुलाई को मनाई जाएगी। इसे महर्षि वेद व्यास के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। वेद व्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : Guru Purnima 2021 : आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार 23 जुलाई को मनाई जाएगी। इसे महर्षि वेद व्यास के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। वेद व्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। वेदों को अलग-अलग खंड ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद में विभाजित करने से इसका नाम महर्षि वेद व्यास पड़ा। श्री महादेव गिरि संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि शुक्रवार को व्रत की पूर्णिमा के साथ ही गुरु पूजन का पर्व भी मनाया जाएगा।
गुरु की परमं ब्रह्म से तुलना
शास्त्रों में आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूजन का पर्व माना गया है। जीवन में गुरु का स्थान सबसे पहले आता है। संत तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में गुरु को शिव शंकर का रूप माना है। वंदे बोधमयं नित्यं गुरु शंकररुपिणं। वेदों व शास्त्रों में गुरु को ब्रह्म, विष्णु व महेश का रूप मानकर वंदना की गई है। गुरुर्बह्म गुरु विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुर्साक्षात परमं ब्रहम तस्मै श्री गुरुवे नम:। डा. नवीन जोशी ने बताया कि दो प्रकार के गुरु बताए गए हैं। शिक्षागुरु जो विद्या का ज्ञान देते हैं, दूसरे दीक्षागुरु जो दीक्षा देकर माया मोह से मुक्त कर परमतत्व का ज्ञान देते हैं।
गुरु पूॢणमा पर शुभ योग
ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी ने बताया कि इस साल गुरु पूर्णिमा पर विष्कुंभ योग, प्रीति योग व आयुष्मान योग रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में प्रीति व आयुष्मान योग का एक साथ बनना शुभ माना जाता है। दोनों योग में किए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। विष्कुंभ योग को शुभ नहीं माना जाता। गुरू पूर्णिमा शुक्रवार 23 जुलाई को सुबह 10:45 बजे शुरू होकर शनिवार 24 जुलाई को सुबह 8:08 बजे तक रहेगी।
इस तरह करें पूजन
ज्योतिषाचार्य मंजू जोशी ने बताया कि पूर्णिमा के पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में जागकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद घर के मंदिर को गंगाजल से पवित्र करें। मंदिर में दीपक प्रज्वलित कर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु व भोलेनाथ को स्नानादि कराकर आसन प्रदान करें। रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य अर्पित करें। अपने गुरु का ध्यान करें। संभव हो तो गुरु के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें। गुरु को श्रद्धा पूर्वक अन्न, वस्त्र, मिष्ठान, फूल व सामथ्र्य अनुसार दक्षिणा भेंट करनी चाहिए।