नगर निकायों को दाखिल खारिज के अधिकार देने का मामले हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार

नगर निकाय क्षेत्रों में लैंड रेवन्यू अधिनियम अफसरों का दाखिल खारिज करना नियम विरुद्ध है। हाईकोर्ट के एक मामले में पारित इस आदेश के बाद राज्य के निकाय क्षेत्रों खासकर नगर निगम क्षेत्र में राजस्व अफसरों ने दाखिल खारिज करने से हाथ खींच लिए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 03:53 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 09:22 PM (IST)
नगर निकायों को दाखिल खारिज के अधिकार देने का मामले हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार
नगर निकायों को दाखिल खारिज के अधिकार देने का मामले हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार

नैनीताल, जागरण संवाददाता : नगर निकाय क्षेत्रों में लैंड रेवन्यू अधिनियम अफसरों का दाखिल खारिज करना नियम विरुद्ध है। हाईकोर्ट के एक मामले में पारित इस आदेश के बाद राज्य के निकाय क्षेत्रों खासकर नगर निगम क्षेत्र में राजस्व अफसरों ने दाखिल खारिज करने से हाथ खींच लिए हैं। अब निकायों को दाखिल खारिज का अधिकार देने के मामले में राज्य सरकार ने व्यापक विधिक विमर्श के बाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। न्याय विभाग की ओर से इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त सरकारी अधिवक्ता को पत्र भेजा जाएगा।

दरअसल पिछले साल 16 दिसंबर को हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने एक मामले में अहम आदेश पारित किया। हाईकोर्ट ने अन्य जनहित याचिका में देहरादून में अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए तो अधिकारियों ने अतिक्रमण चिन्हित किये। याचिकाकर्ता का अतिक्रमण भी कार्रवाई की जद में आ गया। याचिकाकर्ता ने एसडीएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल कर भूमि से संबंधित फील्ड बुक में डिमार्केशन की अपील की तो एसडीएम ने अर्जी खारिज कर दी। एसडीएम के आदेश के खिलाफ डीएम कोर्ट में अर्जी दाखिल की, उसे भी खारिज कर दिया। जिसके बाद याचिकाकर्ता संजय गुप्ता हाईकोर्ट पहुंच गए।

हाईकोर्ट ने इस मामले में अहम आदेश पारित कर महल की परिभाषा की विस्तृत व्याख्या की। साफ कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243 q नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम बनाने की प्रक्रिया तय की गई है। जबकि 1901 के लेंड रेवेन्यू एक्ट के अनुसार राजस्व अफसर ग्रामीण इलाकों के लिए हैं तो शहरी क्षेत्रों में इस अधिनियम का प्रभाव कम हो जाएगा। राज्य में म्युनिसपोलिटी एक्ट 1916 के जबकि म्युनिसिपल एक्ट 1956 का लागू है। अब इस मामले में कानूनी विशेषज्ञ भी उलझ गए हैं कि आगे क्या हो।

मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएस रावत कहते हैं कि मामले का विधिक रूप से गहन परीक्षण किया गया। तय हुआ कि सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई तो पुरानी व्यवस्था बहाल हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि इस मामले में सरकार विपक्ष के निशाने पर भी आ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहा कि सरकार सो रही है, जनता रो रही है।

chat bot
आपका साथी