गौलापार जू के लिए सरकार के पास बजट ही नहीं, पांच साल में सिर्फ आधी दीवार और झील बनी

मार्च 2015 में जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हल्द्वानी के गौलापार में इंटरनेशनल लेवल का चिडिय़ाघर बनाने का फैसला लिया तो लगा कि अब इस क्षेत्र में पर्यटन की रोजगार संभावनाओं के साथ शहर को अलग पहचान भी मिलेगी। शुरुआत में तेजी प्रस्ताव आदि तैयार करने का काम भी हुआ।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 08:22 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 08:22 AM (IST)
गौलापार जू के लिए सरकार के पास बजट ही नहीं, पांच साल में सिर्फ आधी दीवार और झील बनी
गौलापार जू के लिए सरकार के पास बजट ही नहीं, पांच साल में सिर्फ आधी दीवार और झील बनी

हल्द्वानी, जेएनएन : मार्च 2015 में जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हल्द्वानी के गौलापार में इंटरनेशनल लेवल का चिडिय़ाघर बनाने का फैसला लिया तो लगा कि अब इस क्षेत्र में पर्यटन की रोजगार संभावनाओं के साथ शहर को अलग पहचान भी मिलेगी। शुरुआत में तेजी प्रस्ताव आदि तैयार करने का काम भी हुआ। मगर पांच साल बाद जमीनी हकीकत यह है कि गौलापार में एक बड़े क्षेत्र में बनने वाले जू की अब तक आधी दीवार और अंदर एक झील ही बन सकी। बजट के अभाव में यह प्रोजेक्ट रफ्तार ही नहीं पकड़ सका।

जून 2019 में वन विभाग के बड़े अफसरों ने दावा किया था कि जूलाजिकल सोसायटी आफ लंदन यानी जेडएसएल ने भी हल्द्वानी के चिडिय़ाघर में दिलचस्पी दिखाई है तो एक बार फिर इस प्रोजेक्ट को पंख लगने की चर्चा हुई थी। जेडएसएल ने डिजायन, प्लानिंग, रेस्क्यू सेंटर के अलावा जू के निर्माण में तकनीकी सहयोग की बात कही थी। मगर राज्य सरकार द्वारा खास दिलचस्पी नहीं दिखाने से प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका।

अस्सी करोड़ से बनना था

तराई पूर्वी वन प्रभाग की 412 हेक्टेयर जमीन पर चिडिय़ाघर का निर्माण होना था। शुरू में बनाई गई डीपीआर में इसकी लागत अस्सी करोड़ रुपये आंकी गई थी। मगर की रफ्तार को देखते हुए अब बजट का बढऩा भी लाजिमी है।

गुजरात का बब्बर शेर और जिराफ भी आता

2015 में जब प्रोजेक्ट की शुरूआत की गई थी तो उसे देश के टाप टेन चिडिय़ाघर में शामिल करने की चर्चा हुई थी। अफसरों की प्लानिंग थी कि यहां गुजरात का बब्बर शेर और अफ्रीकी जेबरा और जिराफ भी आएगा। बायो डायवर्सिटी पार्क का निर्माण करने के साथ बख्तरबंद गाडिय़ों में पर्यटकों को वन्यजीवों का दीदार करने की योजना भी थी।

अब आबादी के सांप छोडे़ जाते

तराई पूर्वी की जिस जमीन पर इंटरनेशनल चिडिय़ाघर को बनाया जाना है। वह पहले नेचुरल जंगल है। यानी इसके अंदर वन्यजीवों की मौजूदगी हैरान नहीं करेगी। प्रोजेक्ट के अटकने से बाहरी वन्यजीव तक फिलहाल नहीं हो सके। मगर आबादी वाले क्षेत्रों से पकड़े जाने वाले जहरीले सांपों को वन विभाग इस जंगल में जरूर छोड़ता है।

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