सरकारी डॉक्टर सुपरस्पेशलिस्ट बनने के लिए नहीं ले सकते हैं कोई फेलोशिप
राज्य बनने के बाद 11 मुख्यमंत्री बन चुके हैं लेकिन आज तक स्वास्थ्य सुविधाएं दुरुस्त करने की ठोस पहल किसी ने नहीं की। प्रांतीय चिकित्सा सेवा में जाने के बाद कोई सुपरस्पेशलिस्ट बनने के लिए फेलोशिप या पढ़ाई करना चाहता है तो मन मसोसकर रहना पंड़ता है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : राज्य बनने के बाद 11 मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन आज तक स्वास्थ्य सुविधाएं दुरुस्त करने की ठोस पहल किसी ने नहीं की। प्रांतीय चिकित्सा सेवा में जाने के बाद कोई सुपरस्पेशलिस्ट बनने के लिए फेलोशिप या पढ़ाई करना चाहता है तो मन मसोसकर रहना पंड़ता है।
स्वास्थ्य विभाग के सरकारी अस्पतालों में एमडी व एमएस के बाद कोई डाक्टर फैलोशिप लेना चाहता है, या फिर फिर किसी तरह की सुपरस्पेशलिटी की डिग्री हासिल करना चाहता है, तो वह नहीं कर सकता है। ऐसा इसलिए कि अभी तक सरकार ने किसी भी तरह की नीति तय नहीं की है। अगर किसी को पढ़ाई करनी है तो या तो नौकरी छोडऩी पड़ती है या फिर सुपरस्पेशलिटी की पढ़ाई का सपना ही छोड़ देना पड़ता है। जबकि, स्वास्थ्य मंत्रालय तक इस तरह के आवेदन समय-समय पर पहुंचते हैं। इसके बावजूद नियम बनाने को लेकर किसी तरह की सक्रियता नहीं नजर आती है।
जनप्रतिनिधि हों या नौकरशाह, जब भी उनसे सुपरस्पेशलिटी की सुविधा के बारे में पूछा जाता है तो उनका जवाब होता है, डाक्टर नहीं आते हैं। जबकि हकीकत यह है कि पद ही सृजित नहीं हैं। सुपरस्पेशलिटी को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित नहीं किया गया है। राज्य के तीन राजकीय मेडिकल कॉलेजों में सुपरस्पेशलिटी बढ़ाने के दावे किए गए हैं, लेकिन महज औपचारिकता भर ही है।
हल्द्वानी में सुपरस्पेशलिस्ट तैनात किए गए हैं। पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं किया गया है। अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर व ट्रेंड स्टाफ तक नहीं उपलब्ध कराया गया है। प्रदेश अध्यक्ष, प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ डा. नरेश नपलच्याल ने बताया कि यह सरकारी नीति का मामला है। अभी इसमें किसी तरह की नीति नहीं है। वैसे अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। अब मेडिकल कॉलेजों में सुपरस्पेशलिटी की सुविधाएं हैं।