सालों जेल में रहकर ब्रितानी हुकूमत की प्रताड़ना सहकर गोवर्धन तिवारी ने तेज की स्‍वतंत्रता आंदोलन की धार

स्वतंत्रता संग्राम में कुमाऊं का डंका बनारस में बजाने वाले अल्मोड़ा निवासी गोवर्धन तिवारी ने नमक सत्यागह आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजों की चूले हिला दी थी। जिससे उन्हें तीन माह के लिए जेल जाना पड़ा था। आजादी के बाद वह उत्‍तर प्रदेश के मंत्री भी बने।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 07 Apr 2021 07:47 AM (IST) Updated:Wed, 07 Apr 2021 07:47 AM (IST)
सालों जेल में रहकर ब्रितानी हुकूमत की प्रताड़ना सहकर गोवर्धन तिवारी ने तेज की स्‍वतंत्रता आंदोलन की धार
सालों जेल में रहकर ब्रितानी हुकूमत की प्रताड़ना सहकर गोवर्धन तिवारी ने तेज की स्‍वतंत्रता आंदोलन की धार

किच्छा, जागरण संवाददाता : स्वतंत्रता संग्राम में कुमाऊं का डंका बनारस में बजाने वाले अल्मोड़ा निवासी गोवर्धन तिवारी ने नमक सत्यागह आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजों की चूले हिला दी थी। जिससे उन्हें तीन माह के लिए जेल जाना पड़ा था। देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद उत्तर प्रदेश के मंत्री रहकर उन्होंने राज्य के उत्थान में भी अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की थी।

आठ अगस्त, 1906 में अल्मोड़ा के ग्राम जिंगौली तौली पट्टी रगोड़ पो. मनोली में देवी दत्त तिवारी के बालक ने जन्म लिया तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह बालक आगे चल कर स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाकर परिवार का नाम रोशन करेगा। गोवर्धन तिवारी ने भनौली प्राथमिक विद्यालय से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। उसके बाद वह बनारस की काशी विद्यापीठ में उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने गए तो वहां से देश की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद गए। 

बनारस के चंदौली तहसील में वर्ष, 1930 में उन्होंने नमक सत्यागह में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए एक माह तक आंदोलन को संगठित करने का काम किया। उस दौरान अंग्रेजों की नजर में आने के बाद उन्हें पकड़ कर बनारस जेल में डाल दिया था। तीन माह तक वह जेल में रहे। उसके बाद एक वर्ष तक वह आचार्य नरेंद्र देव के परिवार के साथ ओड़ीसा में रहे। वर्ष, 1932 में पिता की मृत्यु के बाद उन्हें दो वर्ष तक अपने घर पर ही जिम्मेदारियों का निर्वाहन करना पड़ा। लेकिन भारत मां को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा देख उनका मन नहीं लगा और वह एक बार फिर देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। वर्ष, 1941 में एक वर्ष वह बनारस जेल में रहे। 

अंग्रेजों के उत्पीड़न के बाद भी उनका जज्बा आजादी के प्रति कमजोर नहीं पड़ा और उनका संघर्ष लगातार जारी रहा। जेल में रहने के दौरान उनकी पत्नी का स्वास्थ्य खराब होने के कारण वह एक माह पैरोल पर अल्मोड़ा आए थे। उसके बाद वर्ष, 1942 में फिर जेल गए और उनकी सक्रिय भागीदारी से परेशान अंग्रेज सरकार ने उन्हें ढाई वर्ष तक जेल में रखा। इस दौरान वह लखनऊ सेंट्रल जेल में बंद रहे। 

आजादी के बाद किच्छा में आकर बसे 

आजादी के बाद परिवार के साथ वह चुकटी देवरिया किच्छा यूएस नगर में आकर बस गए। आजादी के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और वर्ष, 1952 से 1957 तक अल्मोड़ा की बारामंडल विधानसभा से विधायक चुने गए। उनके पोते पूर्व मंडी सभापति रमेश चंद्र तिवारी बताते है कि वर्ष, 1957 में चुनाव हारने के बाद वह चुकटी में ही रहने लगे, लेकिन सेवा का जो जज्बा उनके अंदर था वह कम नहीं हुआ और इस दौरान उन्होंने दस वर्ष तक जिला परिषद अध्यक्ष रहते हुए सेवा की। उसका परिणाम भी उनको मिला और वर्ष, 1980 में वह फिर विधायक चुने गए और उनको वन एवं आबकारी मंत्री के रुप में उत्तर प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। 13 अक्टूबर, 1988 को लखनऊ के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।  

1985 में लिया सक्रिय राजनीति से सन्यास

देश की आजादी में सक्रिय भागीदारी देने वाले गोवर्धन तिवारी ने एक बार फिर त्याग का परिचय दिया और वन मंत्री रहते उन्होंने सक्रिय राजनीति से किनारा करने का मन बना लिया। इसकी सूचना उनके द्वारा तात्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विश्वनाथ प्रताप सिंह को वर्ष, 1984 में ही पत्र भेज कर 1985 का विधानसभा चुनाव न लडऩे का एलान किया था।

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