Story of Emergency : अपातकाल के दौरान बसों और रेल गाडिय़ों में अखबार बांट कर लोगों को जगा रहे थे गोपाल कोच्छड़

Story of Emergency अपातकाल के दौर में तीन माह 22 दिन नैनीताल व सेंट्रल जेल बरेली में सही यातनाओं के जख्म लोकतंत्र सेनानी गोपाल कोच्छड़ के जेहन में आज भी जिदा हैं। सत्याग्रह कर जेल जाते समय पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा था।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 09:45 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 09:45 AM (IST)
Story of Emergency :  अपातकाल के दौरान बसों और रेल गाडिय़ों में अखबार बांट कर लोगों को जगा रहे थे गोपाल कोच्छड़
Story of Emergency : अपातकाल के दौरान अखबार बांट कर लोगों को जगा रहे थे गोपाल कोच्छड़

जयपाल सिंह यादव, बाजपुर : Story of Emergency : अपातकाल के दौर में तीन माह 22 दिन नैनीताल व सेंट्रल जेल बरेली में सही यातनाओं के जख्म लोकतंत्र सेनानी गोपाल कोच्छड़ के जेहन में आज भी जिदा हैं। सत्याग्रह कर जेल जाते समय पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा था। नौ दिसंबर 1975 को सरकार के जुल्म के विरोध में गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेक कर नारेबाजी करते हुए चमन लाल पासी, नरेंद्र दुग्गल, रामफल, सूरजपाल आदि के साथ भगत सिंह चौक पर पहुंचे तो पुलिस ने रोक लिया गया। विरोध पर पीटा और गिरफ्तार कर हल्द्वानी जेल ले गए।

अगले दिन लगभग चार किमी पैदल चलाकर कोर्ट में पेश कर डीआइआर के तहत आरोपित करते हुए जेल भेज दिया। यहां से 14 दिन बाद सेंट्रल जेल बरेली ले जाया गया। जहां बी-ग्रेड की जेल में रखा गया। बेहद घटिया भोजन देने पर जेल के अधिकारियों से कहासुनी होती। ऐसे में उन्हें भोजन ही नहीं दिया जाता था। कानून के तहत 90 दिन तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। शाह कमीशन की जांच रिपोर्ट के बाद उन्हें तीन माह 22 दिन बाद पांच मार्च 1976 को जमानत पर रिहा किया गया।

सच दिखाने वाले अखबारों पर लगा दिया था सेंसर

कोच्छड़ ने बताया कि आपातकाल के दौरान सरकार के जुल्मों की खबरें जनता तक नहीं पहुंचने देने के लिए सभी समाचार पत्रों की खबरों को सेंसर कर दिया गया था। ऐसे में संघ के केंद्रीय नेतृत्व ने सभी इकाइयों को शासन व पुलिस के जुल्म की खबरों को स्टेंसिल मशीन (हाथ से चलाने वाली मशीन) से योगराज पासी के घर पर रात में पंपलेट पर ङ्क्षप्रट करने को कहा गया। कोच्छड़ साथियों के साथ ट्रेनों-बसों आदि में अखबार बांटने के साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर भी चस्पा कर आते थे। इसमें गुरिल्ला युद्ध की भांति कार्य होता था। कार्यकर्ता चोरी-छिपे इस कार्य को अंजाम देते थे। पंपलेटों को देखकर पुलिस हमेशा बौखलाहट में हम लोगों को ढूंढती रहती थी। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही संघ प्रिय थे और जनसंघ की गतिविधियों को संचालित करने में सक्रिय रहते थे।

पांच लोगों को अभी भी नहीं मिला दर्जा

आपातकाल का दौर झेल चुके शूरवीरों को उत्तराखंड सरकार ने लोकतंत्र सेनानी का दर्जा दिया है। राज्य में मात्र 52 लोगों का चयन हो पाया। इन्हें मीसा बंदी माना गया। इसमें भी पांच लोगों को जेल से रिकार्ड न मिलने के चलते 46 वर्ष बाद भी यह सम्मान नहीं मिल पाया। जबकि पांच लोगों की मृत्यु हो चुकी है। वर्तमान में राज्य में 42 लोग लोकतंत्र सैनानी है। जिसमें कुछ की घोषणा होना बाकी है। कोच्छड़ के अनुसार सरकार को सभी सेनानियों के प्रति समान कार्यवाही करनी चाहिए।

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