कुमाऊं में नैनीताल से हुई थी बालिका शिक्षा की शुरुआत

ब्रिटिश कुमाऊं में छात्राओं का पहला कैथोलिक स्कूल सेंट मैरी कान्वेंंट आज भी हजारों अभिभावकों के लिए उम्मीद बना है। अभिभावकों के साथ बच्चियों को भी लगता है कि इस स्कूल में प्रवेश हो जाय तो भविष्य संवर जाएगा।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 05 Dec 2020 11:15 AM (IST) Updated:Sat, 05 Dec 2020 11:15 AM (IST)
कुमाऊं में नैनीताल से हुई थी बालिका शिक्षा की शुरुआत
कलेक्ट्रेट के समीप स्थित सेंट मैरी कान्वेंंट स्कूल की स्थापना 1878 में मदर सेलिशिया रैनर द्वारा की गई थी।

किशोर जोशी, नैनीताल : ब्रिटिशकाल से ही एजुकेशन हब के रूप में प्रसिद्ध हो चुके नैनीताल में बालिका शिक्षा के लिए बने शिक्षण संस्थान गौरवशाली अतीत का प्रतिबिंब बने हुए हैं। ब्रिटिश कुमाऊं में छात्राओं का पहला कैथोलिक स्कूल सेंट मैरी कान्वेंंट आज भी हजारों अभिभावकों के लिए उम्मीद बना है। अभिभावकों के साथ बच्चियों को भी लगता है कि इस स्कूल में प्रवेश हो जाय तो भविष्य संवर जाएगा। शहर के कलेक्ट्रेट के समीप स्थित सेंट मैरी कान्वेंंट स्कूल की स्थापना 1878 में मदर सेलिशिया रैनर द्वारा की गई थी। इसकी शुरुआत सिर्फ चार आवासीय छात्राओं के प्रवेश से हुई थी। तब यह मल्लीताल में वेलबेडियर नामक बंगले में स्थित था। बाजार के निकट होने की वजह से सिस्टर सेलिशिया हर शाम स्कूल उपयुक्त स्थान की तलाश में रहती थी।

इतिहासकार प्रो अजय रावत के अनुसार एक शाम उनकी तलाश रंग लाई और उनकी नजर तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर सर हैनरी रैमजे के निजी आवास पर पड़ी। तब उन्होंने साथियों का बताया कि जब मैं समाजसेवा के लिए भारत आई तो सदैव स्वप्न में यह ईमारत दिखाई देती थी।  उस स्वप्न में मैं छोटी बालिकाओं को पढ़ाती थी। इसके बाद वह सर हैनरी रैमजे से मिली और दिवास्वप्न व शैक्षणिक उद्देश्य के बारे में बताया। कमिश्नर रैमजे सिस्टर सेलिशिया से मिलकर बहुत खुश हुए और टोकन मनी लेकर अपना आवास तथा भूमि दान कर दिया। उस समय उनके आवास का नाम रैमजे पार्क था, जिसे हिंदुस्तानी लोग रामनी पार्क कहते थे। आज भी यह स्कूल रामनी कान्वेंंट के नाम से जाना जाता है।

प्रो रावत बताते हैं कि रैमजे ने अपनी इस विशाल संपत्ति में एक बंगला और एक कॉटेज का निर्माण कराया था। आज बंगले में कान्वेंंट स्कूल स्थापित है, जबकि कॉटेज में स्कूल की चिकित्साशाला स्थापित है।  रैमजे इस्टेट में तीन छोटे छोटे समर हाउस थे और चारों ओर घना जंगल, जिसे आज भी स्कूल द्वारा संरक्षित किया गया है। चार जनवरी 1879 को यह स्कूल स्थाई रूप से वेलबेडियर से रैमजे पार्क स्थापित हो गया। विद्यालय की छात्राएं सालों से पुराने अखबार की थैलियों को बनाकर शहर समेत भवाली के दुकानदारों को मुफ्त में बांटती हैं। पॉलीथिन के खिलाफ इनकी मुहिम सालों से चल रही है। थैली बनाने के लिए स्कूल में ही मशीन स्थापित की गई है।

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