वन विभाग ने हिंदी, कुमाऊंनी और गढ़वाली में जंगल बचाने के लिए लोगों से मांगा सहयोग
जंगलों की आग ने वन विभाग पर्यावरण प्रेमियों से लेकर आम लोगों को भी चिंता में डाल दिया है। 20 अप्रैल तक करीब 3500 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुका था। जिस वजह से 50 हजार पेड़ भी जलकर राख हो गए।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : जंगलों की आग ने वन विभाग, पर्यावरण प्रेमियों से लेकर आम लोगों को भी चिंता में डाल दिया है। 20 अप्रैल तक करीब 3500 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ चुका था। जिस वजह से 50 हजार पेड़ भी जलकर राख हो गए। वहीं, वन विभाग ने जंगल की आग पर काबू पाने के लिए अब कुमाऊंनी व गढ़वाली बोली में अपील कर लोगों से सहयोग मांगा है। कुमाऊंनी में कहा जा रहा है कि न हरियाली, न पहाड़, न परिंदों की चहचहाट इन साबौक बिना कस लागुल आपण पहाड़। वहीं, गढ़वाली में अपील की जा रही है कि अगर वनों में आ देखला तै नजदीकी वन चौकी में सूचित जरूर करा।
फायर सीजन के लिहाज से यह साल उत्तराखंड के लिए ठीक नहीं है। 15 जून तक फायर सीजन माना जाता है। लेकिन आग के आंकड़ों ने राज्य गठन के बाद से अब तक इसे सात उन सालों की श्रेणी में शामिल कर दिया है। जब आग की सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई। सीमित संसाधनों व स्टाफ की कमी के बावजूद वन विभाग जैसे-तैसे जंगलों में लगी लपटों पर काबू पाने में जुटा है। हालांकि, उम्मीद है कि अब मौसम भी महकमे का साथ देगा। वहीं, हिंदी, कुमाऊंनी व गढ़वाली में अपील कर विभाग के अफसर लोगों को जंगलों का महत्व बता रहे हैं। बताया जा रहा है कि पर्यटन रोजगार की रीढ़ भी हरे-भरे पहाड़ है। इसलिए जंगलों को बचाने में अपनी सहभागिता जरूर निभाए।
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