वन अनुसंधान केंद्र के परिसर में घिंघारू के पेड़ पर आए फल-फूल, जलवायु परिवर्तन का असर

ज्योलीकोट से ऊपर वाले क्षेत्र में मिलने वाला घिंघारू का फल अब हल्द्वानी में भी तैयार हो गया है। रामपुर रोड स्थित वन अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में इसे तैयार कर लिया गया है। मौसम के हिसाब से फल और फूल दोनों आ चुके हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 02:28 PM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 05:27 PM (IST)
वन अनुसंधान केंद्र के परिसर में घिंघारू के पेड़ पर आए फल-फूल, जलवायु परिवर्तन का असर
वन अनुसंधान केंद्र के परिसर में घिंघारू के पेड़ पर आए फल-फूल, जलवायु परिवर्तन का असर

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : ज्योलीकोट से ऊपर वाले क्षेत्र में मिलने वाला घिंघारू का फल अब हल्द्वानी में भी तैयार हो गया है। रामपुर रोड स्थित वन अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में इसे तैयार कर लिया गया है। मौसम के हिसाब से फल और फूल दोनों आ चुके हैं। यह एक तरह से जलवायु परिवर्तन का मामला है।

घिंघारू को लेकर माना जाता है कि यह 1500 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर मिलता है। इसमें औषधीय गुण भी होते हैं। घिंघारू एक झाड़ीनुमा प्रजाति है। इसकी लकड़ी को काफी मजूतत माना जाता है। इसके अलावा भू-कटाव रोकने में भी घिंघारू की अहम भूमिका होती है। रेंजर अनुसंधान मदन बिष्ट के मुताबिक परिसर में लगे पेड़ पर फल पक चुके हैं। बरसात के वक्त ही यह फल देता है।

आर्मी के लिए बनता है जैम

वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी के रेंजर मदन बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड में डीआरडीओ द्वारा घिंघारू का जैम बनाया जाता है। इसे आर्मी के जवानों के लिए बेहतर माना जाता है। खासकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात जवानों के लिए। फॉरेस्ट के मुताबिक घिंघारू में प्रोटीन की मात्रा काफी ज्यादा होती है।

बद्री तुलसी लालकुआं में तैयार हो चुकी

भगवान बदरीनाथ की पूजा थाली में बद्री तुलसी का खासा महत्व है। खास तरह की यह तुलसी बद्रीनाथ क्षेत्र में पाई जाती है। क्योंकि, वो ऊंचाई वाला इलाका है। हालांकि, लगातार इस्तेमाल की वजह से इसके अस्तित्व पर भविष्य में संकट पैदा होने का डर था। ऐसे में वन अनुसंधान ने बद्री तुलसी के संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाने के बाद लालकुआं में इसकी पौध भी तैयार कर ली।

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