गौला पार झोपड़ी में आग : छलछलाती आंखों से राख की खाक छानती रही मां
उसकी आंखों से छलछलाते आंसू अपने जिगर के टुकड़े को उस राख में ढूंढ रही हैं जहां उसका बच्चा दफन हो गया। आखों में अथाह पीड़ा स्पष्ट दिखाई दे रही है।
प्रकाश जोशी, लालकुआं। अग्निकांड से झोपडिय़ों की जगह सिर्फ राख ही राख बची है। एक मजदूर पेड़ में चढ़कर उसमें बची चिंगारियां को बुझा रहा है। आसपास महिलाओं और पुरुषों का समूह आपस में मासूम राजा की मौत का दुख जता रहे हैं। इन्हीं के बीच कुछ ही दूरी पर बैठी एक मां जिसका कलेजे का टुकड़ा इस अग्निकांड की भेंट चढ़ चुका है, उसकी आंखों से छलछलाते आंसू अपने जिगर के टुकड़े को उस राख में ढूंढ रही हैं, जहां उसका बच्चा दफन हो गया। आखों में अथाह पीड़ा स्पष्ट दिखाई दे रही है। मासूम राजा के क्षत विक्षत शव को देखने के बाद भी उसकी मां रूबी की आंखों को विश्वास नहीं हो रहा कि वह अब इस दुनिया में नहीं रहा। इस दृश्य को देखकर हर किसी की आंखे नम थी। आधे घंटे तक बेटे के गम में रोती बिलखती मां की आवाज फिर गायब हो गई और वह बदहवास होकर जमीन पर गिर गिर पड़ी। मां के मुंह से यही शब्द बार-बार निकल रहे थे कि अभी 16 दिन ही तो हुए थे उसे इस दुनियां में आए हुए। अभी उसकी अच्छी तरह से आंखे भी नहीं खुली थी कि काल के क्रूर हाथों ने उसके आशियाने को ही चिता में तब्दील कर दिया।
भाई को आग की ज्वाला से बचा नहीं पाए सूरज व मोनू
अग्निकांड के समय राजा घर में सो रहा था, जबकि उसके बड़े भाई सूरज और मोनू घर में ही खेल रहे थे। आग लगने के बाद सूरज व मोनू ने उसे बचाने का प्रयास भी किया, लेकिन आग की लपटें इतनी तेज आई की वह सफल नहीं हो पाए, जिसके बाद जब तक वह पड़ोसियों को राजा के अंदर सोने की जानकारी देती तब तक देर हो चुकी थी।
अब झोपड़ी का साया भी उठा
अग्निकांड में दूसरी झोपड़ी 70 वर्षीय सुखमनियां पत्नी स्व. रामजनम की जली है। वह पिछले 40 वर्षों से यहां रह रही हैं। वह मूल रूप से गड़वा बिहार की रहने वाली है। उसके बेटे कृष्णा की झोपड़ी बगल में ही है। वह दो बकरियों के सहारे अपना जीवन यापन कर रही है। उसने बताया कि बेटा अपने परिवार का पूरा नहीं कर पाता है। पति की मौत के बाद बकरियों को पालकर भरण पोषण कर रही है। पहले तीन बकरियां थी पिछले माह एक बकरी किसी ने चुरा दी। सरकार द्वारा वृद्धा व विधवा पेंशन भी नहीं दी जाती है। कई बार जनप्रतिनिधियों के चक्कर काट दिए है लेकिन कोई फायदा नही हुआ।
सूझबूझ से आग फैलने से रोकी
मजदूरों के घर पर मौजूद महिलाओं व वाहन चालकों ने सूझबूझ के परिचय देते हुए फायर बिग्रेड के आने तक आग को फैलने से रोके रखा, जिससे 2016 में मोटाहल्दू में हुए भीषण अग्निकांड की पुनरावृत्ति होने से बच गई। बता दें कि 26 अप्रैल 2016 को मोटाहल्दू खनन गेट में स्थित श्रमिकों की झोपडिय़ों में भीषण आग लग गई, जिसमें महिला समेत उसके छह वर्षीय पुत्र की जलकर मृत्यु हो गई थी, जबकि मजदूरों को करीब सौ झोपडिय़ां समेत लाखों रुपये की नगदी व सामान भी जलकर राख हो गया था। उस समय अग्निशमन की आधा दर्जन वाहनों ने कई फेरे पानी लाकर चार घंटे में आग को बुझाया था। गौला नदी के मजदूरों की झोपड़ी में आग लगने की घटनाओं को देखते हुए ग्रामीणों ने शासन प्रशासन से गौला मजदूरों के लिए टिनशेड बनाने की मांग की है।
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