ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, कृषि विज्ञान केंद्र 200 काश्तकारों को उपलब्ध कराएगा बीज

पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली अब जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी। इसके लिए कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र काश्तकारों को उन्नत बीज और उत्पादन का तकनीकि का प्रशिक्षण देगा।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 23 Oct 2020 02:37 PM (IST) Updated:Fri, 23 Oct 2020 02:37 PM (IST)
ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, कृषि विज्ञान केंद्र 200 काश्तकारों को उपलब्ध कराएगा बीज
ब्रोकली बदलेगी काश्तकारों की तकदीर, कृषि विज्ञान केंद्र 200 काश्तकारों को उपलब्ध कराएगा बीज

चम्पावत, जेएनएन : पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली अब जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी। इसके लिए कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र काश्तकारों को उन्नत बीज और उत्पादन का तकनीकि का प्रशिक्षण देगा। जिले में अब तक गिने चुने क्षेत्रों में चुनिंदा काश्तकार ही ब्रोकली पैदा कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल से काश्तकार बड़े पैमाने पर ब्रोकली का उत्पादन कर उसे बाजार में बेच सकेंगे।

कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र सुईं में विगत दस वर्षो से ब्रोकली पैदा की जा रही है। अनुसंधान का लाभ काश्तकारों तक पहुंचाने के लिए केंद्र की ओर से जिले के 100 प्रगतिशील काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उन्हें पर्वतीय परिवेश में पैदा होने वाला बीज उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन लाभ कम होने के चलते अधिकांश काश्तकार इसके उत्पादन में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। केंद्र ने अब 200 और चुनिंदा काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का तकनीकि प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें बीज उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. एमपी सिंह ने बताया कि गोभी के मुकाबले ब्रोकली का वजन काफी कम होने के कारण काश्तकार इसे लाभ का सौदा नहीं मान रहे हैं जिसके कारण इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

उन्होंने बताया कि ब्रोकली के एक फूल का अधिकतम वजन 400 ग्राम तक हो सकता है जबकि गोभी का वजन अमूमन डेढ़ से दो किलो या उससे अधिक हो सकता है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र में ब्रोकली का क्रेज न होना भी इसके उत्पादन में कमी की मुख्य वजह है। जबकि सलाद के तौर पर खाई जानी वाली ब्रोकली पौष्टिक गुणों से भी भरपूर है। उन्होंने बताया कि ब्रोकली के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जाएगा ताकि लोग इसका अधिक से अधिक सेवन कर सकें। पहले चरण में सुईं, रायनगर चौड़ी, कलीगांव, फोर्ती, कर्णकरायत, पाटन-पाटनी गांवों के काश्तकारों को प्रशिक्षण देकर बीज उपलब्ध कराया जाएगा।

पॉलीहाउस में होता है अच्छा उत्पादन

ब्रोकली का उत्पादन पॉलीहाउस में काफी अच्छा होता है। पॉलीहाउस के बाहर इसकी खेती करने का पूरा लाभ कास्तकारों को नहीं मिलता। पॉलीहाउस में यह डेढ़ से दो माह के भीतर खाने योग्य हो जाती है। इसका उत्पादन फूल गोभी की तरह ही होता है। पॉलीहाउस में साल भर में इसकी दो खेती की जा सकती हैं।

कैंसर निरोधी होती है ब्रोकली

कई पौष्टिक गुणों से भरपूर ब्रोकली में कैंसर निरोधी क्षमता भी होती है। कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक गायत्री देवी ने बताया कि ब्रोकली में कई ऐसे रसायन होते हैं जो कैंसर से लडऩे का काम करते हैं। इसके अलावा कैल्सियम, फास्फोरस और आयरन की मात्रा भी इसमें भरपूर होती है।

पर्वतीय वातावरण के लिए उपयोगी प्रजातियां

पर्वतीय परिवेश के लिए ब्रोकली की ग्रीन मैजिक, एनएस-50, केटीएस-1 और कैप्टन 488 नामक प्रजातियां उपयुक्त हैं। कृषि विज्ञान केंद्र ने इन प्रजातियों का परीक्षण कर इसे यहां की पर्यावरणीय परिस्थिति के अनुकूल पाया है। जिन 200 नए काश्तकारों को ब्रोकली उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाएगा उन्हें इसी प्रजाति के बीज उपलब्ध कराए जाएंगे।

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