इंडोनेशियन तकनीक से मत्स्य पालन कर किसान हो रहे मालामाल, चार माह बेची छह लाख की मछली

जमीन में तालाब बना कर मछलियों के उत्पादन करने में जगह का ज्यादा इस्तेमाल होता है। बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी से किसान साल की तीन क्राप आसानी से ले सकता है। जबकि तालाब में मछली की एक या दो क्राप ही किसान ले पाता है।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:39 PM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 06:05 AM (IST)
इंडोनेशियन तकनीक से मत्स्य पालन कर किसान हो रहे मालामाल, चार माह बेची छह लाख की मछली
इसकी खासियत यह है कि इसे कम क्षेत्रफल व कम पानी का उपयोग करते हुए अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।

बृजेश पांडेय, रुद्रपुर। अब वह दिन दूर नहीं जब इंडोनेशिया की बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी को अपनाकर देशभर के मत्स्य पालक मालामाल हो सकेंगे। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मत्स्यपालकों की आमदनी को दोगुना करने का सपना भी साकार हो सकेगा। इसकी बानगी यूएस नगर के किसान ने कर दिखाया है। इस तकनीक को अपनाकर चार माह में 30 ङ्क्षक्वटल मछली बेचकर लाखों रुपये की आमदनी कर चुके हैं।  

ऊधमङ्क्षसह नगर में इंडोनेशिया की टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर मछली उत्पादन का काम शुरू हो गया है। भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत पहले चरण में जिले के आठ किसान बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी के माध्यम से मत्स्य पालन कर रहे हैं। इस टेक्नोलॉजी की खासियत यह है कि इसे कम क्षेत्रफल व कम पानी का उपयोग करते हुए मछलियों का अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।

15 हजार लीटर के सात टैंक बनाते हैं, तो लगभग छह माह में 30 ङ्क्षक्वटल मछली का उत्पादन कर सकते हैं। इसके लिए विभाग की ओर से अनुदान भी दिया जाता है। ताकि मत्स्य पालन कर लोग स्वरोजगार की ओर अग्रसर हों। खटीमा के कपिल ने सबसे पहले 50 टैंक लगाकर मत्स्य पालन शुरू कर दिया था। इसके चलते उन्होंने हाल ही में मछलियों की पहली क्रॉप ले ली है। खटीमा के किसान कपिल तलवार अब तक बेहतर काम कर के 30 ङ्क्षक्वटल पंगेसियस मछली बेच चुके हैं। ङ्क्षसगी, पंगेसियस, स्नेक हैड (शोल) जैसी मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है। जबकि जमीन में तालाब बना कर मछलियों के उत्पादन करने में जगह का ज्यादा इस्तेमाल होता है। बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी से किसान साल की तीन क्राप आसानी से ले सकता है। जबकि तालाब में मछली की एक या दो क्राप ही किसान ले पाता है। 

शोल और चील कैट के बीज कर रहे तैयार 

कपिल ने सबसे पहले बायोफ्लॉक विधि से ङ्क्षसधि मछली करीब 30 ङ्क्षक्वटल बेच चुके हैं। अब शोल और दक्षिण भारत में सबसे अधिक खाई जाने वाली मछली कैट फिश के बीज तैयार कर रहे हैं। तीन-चार माह में ये मछलियां करीब एक किलो से अधिक की होंगी। 

मत्स्य विभाग के उपनिदेशक संजय छिमवाल ने बताया कि बायोफ्लॉक टेक्नोलॉजी से जनपद के आठ किसान मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं। खटीमा के कपिल अच्छा कर रहे हैं, ङ्क्षसगी प्रजाति की मछली बेच भी चुके हैं, जिसमें किसानों का काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। उन्होंने बताया कि किसान बायोफ्लॉग टेक्नोलॉजी से कई तरह की मछलियों का उत्पादन कर रहे हैं।

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