कोरोना से मौत के बाद गांव वालों ने शव लेने से किया इन्कार, अंतिम समय में परिजन नहीं देख सके चेहरा

कोरोना संक्रमित युवक की मौत के बाद पुलिस व प्रशासन ने उसका अंतिम संस्कार राजपुरा श्मशान घाट में किया। अंतिम समय में परिवार के लोग उका चेहरा भी नहीं देख सके।

By Edited By: Publish:Wed, 03 Jun 2020 02:24 AM (IST) Updated:Wed, 03 Jun 2020 08:54 AM (IST)
कोरोना से मौत के बाद गांव वालों ने शव लेने से किया इन्कार, अंतिम समय में परिजन नहीं देख सके चेहरा
कोरोना से मौत के बाद गांव वालों ने शव लेने से किया इन्कार, अंतिम समय में परिजन नहीं देख सके चेहरा

हल्द्वानी, जेएनएन : कोरोना संक्रमित युवक की मौत के बाद पुलिस व प्रशासन ने उसका अंतिम संस्कार राजपुरा श्मशान घाट में किया। अंतिम समय में परिवार के लोग उसका चेहरा भी नहीं देख सके। वहीं, पुलिस ने बताया कि संक्रमण के डर से मृतक के गांववालों ने उसकी बॉडी घर लाने से मना किया था। जिस वजह से हल्द्वानी में अंत्येष्टि की गई। 

चम्पावत निवासी एक युवक बाहर से लौटा तो उसे पहले गांव के क्वारंटाइन सेंटर में भर्ती कराया गया। जांच में पॉजिटिव आने पर एसटीएच के कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया। मंगलवार सुबह उसने दम तोड़ दिया, जिसके बाद पुलिस ने शव को मोर्चरी में रखवाने के साथ परिजनों को सूचना दी। दोपहर में करीब पौने तीन बजे गांव से मृतक का चाचा का लड़का और दो लोग और पहुंचे। 

मेडिकल चौकी इंचार्ज मनवर सिंह बिष्ट ने बताया कि उनके अलावा ग्राम प्रधान से भी फोन पर वार्ता की गई। पता चला कि ग्रामीण भी चाहते है कि उसका अंतिम संस्कार हल्द्वानी में हो। शव को पहाड़ न लाया जाए। वहीं, प्रशासन का आदेश मिलने पर शाम को राजपुरा घाट में पुलिस व मेडिकल कॉलेज प्रशासन की मौजूदगी में अंत्येष्टि की गई। गांव के लोगों के साथ ही मोर्चरी के बबलू व राहुल को पीपीई किट पहनाई गई। सभी ने मिलकर राजपुरा घाट पर अंतिम संस्कार किया। घाट पर मेडिकल कॉलेज से लेकर प्रशासन व पुलिस के लोग मौजूद रहे।

पीपीई किट पहन पहुंचे 

अंतिम संस्कार से पहले घाट पर व्यवस्था बनाने को कोतवाल संजय कुमार, चौकी इंचार्ज मनवर बिष्ट, एसआइ सतीश शर्मा, सुशील जोशी, जितेंद्र सिरोड़ी, सिपाही बंशी जोशी पहुंचे। कोतवाल कुछ दूरी पर थे। उन्हें छोड़कर सभी ने पीपीई किट पहन रखी थी। 

बच्चे, पत्‍‌नी कोई नहीं मिल सका 

मृतक के दो बेटे हैं। एक 12 दूसरा 13 साल का। मगर पिता की मौत के बावजूद कोई भी हल्द्वानी नहीं आ सका। पत्‍‌नी व अन्य परिजन भी पहाड़ में है। संक्रमण का डर और नियमों की वजह से शव को कवर करना पड़ता है। अंतिम समय में चचेरा भाई के अलावा गांव दो लोग मौजूद थे।

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