गौलापार से लेकर हल्दूचौड़ तक हाथियों ने फसलों को पहुंचाया नुुकसान, किसान परेशान
गौलापार से लेकर हल्दूचौड़ तक के गांवों में हाथियों हाथियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले झुंडों को रोकने के लिए ग्रामीण भी रतजगा कर रहे हैं। वहीं वन विभाग की टीम पर गश्त की जिम्मेदारी बढ़ गई है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : गौलापार से लेकर हल्दूचौड़ तक के गांवों में हाथियों हाथियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले झुंडों को रोकने के लिए ग्रामीण भी रतजगा कर रहे हैं। वहीं, वन विभाग की टीम पर गश्त की जिम्मेदारी बढ़ गई है। वहीं, लोगों का कहना है कि सिर्फ गश्त से कुछ नहीं होगा। महकमे को सुरक्षा के स्थायी उपाय करने होंगे। लेकिन सुरक्षा दीवार और तारबाड़ को लेकर बजट की कमी का बहाना बनाया जा रहा है। ऐसे में वन विभाग हरसंभव जगहों पर खाई खोद हाथियों का रास्ता बंद करने में जुटा है।
गौलापार का पूरा इलाका काश्तकारी वाला माना जाता है। सूखी नदी से सटे गांवों में अक्सर वन्यजीवों का आतंक रहता है। जिस वजह से ग्रामीणों की परेशानी बढ़ जाती है। लोगों का कहना है कि पहले आपदा की वजह से धान की फसल को खासा नुकसान हुआ। सिंचाई नहर टूटने की वजह से जैसे-तैसे खेतों को सींच फसल लगाई गई। लेकिन अब हाथियों ने परेशान कर रखा है। हल्दूचौड़ इलाके में भी यही हाल है। ऐसे में ठंड के दिनों में ग्रामीणों को रात भर वन विभाग की टीम संग गश्त में सहयोग करना पड़ रहा है। वहीं, रेंजर गौला आरपी जोशी ने बताया कि हर सूचना पर टीम मौके पर पहुंचती है।
डिवीजन को मिले 71 आरक्षी
तराई पूर्वी डिवीजन क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तराखंड की सबसे बड़ी डिवीजन है। इसकी रेंजों का एरिया नेपाल तक से सटा है। डिवीजन को हाल में 71 नए वन आरक्षी मिले हैं। जिन्हें अब जरूरत के हिसाब से नौ रेंजों में भेजा जाएगा।