गरमपानी में मवेशियों की भूख मिटाने को रोजाना लगानी पड़ रही आठ किमी की दौड़

गांवों के लोग खुद के साथ ही मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं वहीं अब गांवों में मवेशियों के लिए घास का संकट भी बढ़ गया है। गांव की महिलाएं करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बमुश्किल घास का इंतजाम कर रही हैं।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 04:14 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 04:14 PM (IST)
गरमपानी में मवेशियों की भूख मिटाने को रोजाना लगानी पड़ रही आठ किमी की दौड़
कोसी नदी पार अल्मोड़ा जनपद के वलनी के जंगल से मवेशियों के लिए घास लेकर पहुंच रही है।

संवाद सहयोगी, गरमपानी (नैनीताल) : पर्वतीय क्षेत्रो के सुदूर गांवों में पहले से ही पेयजल संकट सिर चढ़कर बोल रहा है। गांवों के लोग खुद के साथ ही मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं वहीं अब गांवों में मवेशियों के लिए घास का संकट भी बढ़ गया है। गांव की महिलाएं करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद बमुश्किल मवेशियों के लिए घास का इंतजाम कर रही हैं।

सरकार गांवों में विकास के खूब ढोल पीटे पर धरातल पर दावे खोखले साबित हो रहे हैं। महामारी के इस दौर में तमाम गांवों के लोग पेयजल संकट से जूझ रहे हैं तो वहीं अब गांवों में मवेशियों के लिए घास का भी अकाल पड़ गया है। वनाग्नि से जंगल के जंगल खाक हो चुके हैं जिस कारण मवेशियों के लिए घास का इंतजाम ही नहीं हो पा रहा। मजबूरी में गांव की महिलाएं कई किलोमीटर दूर से घास का इंतजाम करने में जुटी हुई है। तब जाकर मवेशियों की भूख मिटाने का इंतजाम हो रहा है। पेयजल के लिए भी सुदूर प्राकृतिक जल स्रोतों से सिर पर पानी ढोना मजबूरी बन चुका है।

अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे से सटे जौरासी गांव की कई महिलाएं रोजाना घास के लिए करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोसी नदी पार अल्मोड़ा जनपद के वलनी के जंगल से मवेशियों के लिए घास लेकर पहुंच रही है। आवाजाही में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। महामारी के इस दौर में गांव की महिलाओं को रोजाना कई किलोमीटर की दूरी पैदल ही नापनी पड़ रही है। स्थानीय प्रेमा मेहरा, बबीता मेहरा, ललिता देवी, गंगा देवी, ममता देवी, कमला देवी आदि ने शासन प्रशासन से मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध कराने की मांग उठाई है।

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