गौला मजदूरों के आश्रितों को काम दौरान मौत के बाद भी नहीं मिलता मुआवजा
गौला में खनन शुरू होते ही पांच हजार से अधिक मजदूर झारखंड उत्तर प्रदेश व अन्य जगहों से नदी में पसीना बहाने को पहुंच जाते हैं। लेकिन न जिंदा और न मरने के बाद बाद इनकी कोई कद्र होती है।
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : जिस गौला में श्रमिक दिन रात हाड़तोड़ मेहनत कर सरकार का खजाना भरते हैं, उनकी फिक्र किसी को नहीं है। चलिए बताते हैं। सितंबर शुरू होते हुए हर साल गौला में खनन सत्र शुरू कराने के लिए मैराथान तैयारियां शुरू हो जाती हैं। अक्टूबर में भले गौला खोल दी जाए। मगर इंतजार रहता है कि कब दीवाली की छुट्टियां बीते। क्योंकि, इसके बाद ही पांच हजार से अधिक मजदूर झारखंड, उत्तर प्रदेश व अन्य जगहों से नदी में पसीना बहाने को पहुंच जाते हैं। इसके बाद ही उत्तराखंड की सबसे ज्यादा राजस्व देने वाली गौला नदी में कारोबार रफ्तार पकड़ता है। लेकिन न जिंदा और न मरने के बाद बाद इनकी कोई कद्र होती है। काम के दौरान किसी हादसे में अगर जान चली गई तो वन निगम द्वारा कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा। इसके पीछे नियमों को वजह बताया गया है।
पिछले रविवार को आंवला चौकी गेट पर खदान क्षेत्र से निकासी के दौरान अचानक उपखनिज भरी ढांग 55 वर्षीय नारायणी देवी व उसकी 14 साल की पोती पर गिर गई। गंभीर हालत में दोनों को उपचार के लिए एसटीएच लाया गया। जहां इलाज के दौरान नारायणी देवी की मौत हो गई थी। जबकि पोती का उपचार चल रहा है। वहीं, वन निगम के आरएम केएन भारती से पूछने पर उन्होंने बताया कि मजदूरों को विभागीय स्तर पर किसी तरह का मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। जिस वजह से आर्थिक मदद नहीं की जा सकती है। हालांकि, मजदूर व वाहनस्वामी इसे निगम की संवेदनहीनता मानते हैं।
तीन साल में तीन श्रमिकों की मौत : गौला में पिछले तीन साल में तीन मजदूरों की काम के दौरान ढांग गिरने से मौत हो गई है। 2019 में झारखंड के एक श्रमिक के मिट्टी में दबने के बाद वन निगम व वन विभाग का कोई कर्मचारी मदद को नहीं आया था। जिसके बाद साथी श्रमिक एक किमी बाहर तक उसे चारपाई में लेटाकर लाए थे। लेकिन देरी होने के कारण जान नहीं बचाई जा सकी। हालांकि, तत्कालीन आरएम एमपीएस रावत ने मदद दिलवाई थी।
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