पुण्यतिथि विशेष : पहाड़ों के मुश्किल जीवन व जटिलताओं की जुबां थे शैलेश मटियानी

Shailesh Matiyani Death anniversary special साहित्‍यकार शैलेश मटियानी की शनिवार 24 अप्रैल को पुण्‍यतिथि है। वह बेहतरीन कहानीकार व उपन्‍यासकार थे। भाषा के धनी मटियानी की रचनाओं में हर पात्र की झलक मिलती है। उन्‍होंने अपनी यात्रा व जीवन संघर्ष पर कई संस्‍मरण भी लिखे।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 24 Apr 2021 06:45 AM (IST) Updated:Sat, 24 Apr 2021 06:45 AM (IST)
पुण्यतिथि विशेष : पहाड़ों के मुश्किल जीवन व जटिलताओं की जुबां थे शैलेश मटियानी
लेखक अशोक पांडे कहते हैं मटियानी के पास बहुत सारी भाषाएं थीं।

जागरण संवाददाता, हल्‍द्वानी : सिद्धहस्त लेखक के तौर पर पहाड़ों के मुश्किल जीवन की त्रासदियों और जटिलताओं को ज़ुबान देने वाले साहित्‍यकार शैलेश मटियानी की शनिवार 24 अप्रैल को पुण्‍यतिथि है। वह बेहतरीन कहानीकार व उपन्‍यासकार थे। भाषा के धनी मटियानी की रचनाओं में हर पात्र की झलक मिलती है। उन्‍होंने अपनी यात्रा व जीवन संघर्ष पर कई संस्‍मरण भी लिखे। उनका कहानी संग्रह दो दुखों का एक सुख हालात व नियती से मारे भिखारियों के बीच प्रेम को दर्शाता है। लेखक दीपक नौगांई अकेला कहते हैं क‍ि मट‍ियानी ने अपने लेखन को हमेशा कड़क बनाए रखा।

किस्‍सों की भाषा में अति सजग थे मट‍ियानी

लेखक अशोक पांडे कहते हैं मटियानी के पास बहुत सारी भाषाएं थीं। जिन्हें वे जीवन भर तराशते रहे। उनके यहां असंख्य ठेठ गंवई पात्र हैं तो अभिजात्य से भरपूर स्त्रिया। वह रमौल-बफौलों की कहानी को किसी अनुभवी जगरिये की सी साध के साथ सुनाते हैं तो बंबई-इलाहाबाद के क़िस्सों की भाषा में एक अति-सजग और संवेदनशील अन्वेषक-दर्शक जैसे दिखते हैं। उनके लेखन में भिखारियों से लेकर महारानियों तक के प्रेम प्रसंग हैं। एक सिद्धहस्त लेखक के तौर पर उन्होंने कुमाऊं के पहाड़ों के मुश्किल जीवन की सारी त्रासदियों और जटिलताओं को ज़ुबान दी।

उन्‍हें जातिवादी लेखक कहा गया

उपन्‍यासकार लक्ष्‍मण सिंह बटरोही ने मटियानी पर किबात ल‍िखी है। वह कहते हैं 2001 में मटियानी की मृत्यु के फ़ौरन बाद मैंने क‍िताब लिखनी शुरू की थी और इसके न जाने कितने ड्राफ्ट तैयार किये। हर बार लगता था कि मैं जो लिखना चाहता था, उसे न लिखकर कुछ और लिखने लगा हूं। 1961 में  अल्मोड़ा और 1966 में इलाहाबाद में उनके संपर्क में आने के बाद ही मैंने लेखन के शुरुआती प्रयास किए थे। लोगों का कहना था कि वो पहाड़ी संस्कृति का विद्रूप अपनी कहानियों में पेश करते हैं और एक जातिवादी लेखक हैं। अपने पहले कहानी-संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियां’ की लम्बी भूमिका में उन्होंने इस बात का मार्मिक जिक्र किया कि जब वो अपने चाचा की दुकान में कीमा कूट रहे होते थे, कई मनचले युवक उनकी ओर इशारा करते हुए व्यंग्य करते, ‘अरे यार जितना बारीक़ कीमा कूटते हो, हम तो तब मानें, जब उतनी ही बारीक कविता लिखकर दिखाओ!… क्या जमाना आ गया है, जुआरी का बेटा और बूचड़ का भतीजा पंत और इलाचंद्र की बराबरी करने निकला है!’

समाज का दर्शन कराती है अभिव्‍यक्‍ति‍

शैलेश मटियानी सटीक शब्दों का चयन करते थे। मटियानी की अभिव्यक्ति समाज का दर्शन कराती है। बटरोही कहते हैं भाषा मेरे लिए साध्य कभी नहीं रही, वह खुद को और अपने परिवेश को व्यक्त करने का माध्यम मात्र थी। बाद के दिनों में औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब मैंने देखा कि पंडितों के द्वारा परिवेश के बदले सिर्फ शब्दों-ध्वनियों को ही महत्व दिया जा रहा है तो मुझे बहुत निराशा हुई. मैंने जब देखा कि उच्च वर्ण के मेरे कई बुजुर्ग शब्द-ज्ञान के जरिए उनके साथ खेलते और चमत्कार प्रदर्शित करता हैं, मुझे लगा, मेरा यह निर्णय गलत नहीं था क्योंकि बुजुर्गों के रास्ते में चलकर मेरा संपर्क अपने परिवेश से छूटता चला जा रहा था।

पाठ्यक्रम में शामिल हुआ उपन्यास

2000 में नए राज्य का गठन होने के बाद उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने अपना अलग पाठ्यक्रम निर्मित किया। पाठ्यक्रम निर्माण समिति का सदस्य बटरोही भी थे। बटरोही बताते हैं क‍ि अविभाजित उत्तर प्रदेश के परीक्षा पाठ्यक्रम में फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ था, मैंने सुझाव दिया कि हमें अपने पाठ्यक्रम में ऐसे उपन्यास को शामिल करना चाहिए जो उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा हो। मैं इस काम में सफल भी हो गया और शैलेश मटियानी का लोकगाथा परक उपन्यास ‘मुख सरोवर के हंस’ पाठ्यक्रम में रख दिया गया।

मट‍ियानी का संक्षिप्‍त परिचय

वास्‍तविक नाम – रमेश मट‍ियानी

जन्‍मतिथि – 14 अक्‍टूबर 1931

जन्‍म स्‍थान – बाड़़ेछीना अल्‍मोड़ा

पिता – ब‍िशन सिंह मटियानी

निधन - 24 अप्रैल 2001

पहली रचना- रंगमहल पत्रि‍का में बाल कहानी

प्रमुख उपन्‍यास – बोरीबली से बोरबंदर तक, हौलदार, जयमाला, जय तरंग, चिट्ठी रसैन, कबूरतखाना आदि।

प्रमुख कहानी संग्रह – हारा हुआ, तीसरा सुख, हत्‍यारे, चील, महाभोज, कोहरा, प्‍यास और पत्‍थर, सूखा सागर, दो दुखों का एक सुख आदि।

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