तंत्र के गण : कोरोना संकट के दौरान ऊधमसिंह नगर जिले के दारोगा दंपती योद्धा की तरह डटे रहे

असली योद्धा वही कहलाता है जो मुश्किल वक्त में मैदान पर डटा रहे। कोरोना महामारी भी एक ऐसा ही संकट बनकर आई जब हमें योद्धाओं की जरूरत थी। फ्रंटलाइन वारियर्स में शामिल ऊधमसिंह नगर जिले के दारोगा दंपती ने भी यही मिसाल पेश की।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 20 Jan 2021 02:03 PM (IST) Updated:Wed, 20 Jan 2021 09:09 PM (IST)
तंत्र के गण : कोरोना संकट के दौरान ऊधमसिंह नगर जिले के दारोगा दंपती योद्धा की तरह डटे रहे
कोरोना संकट के दौरान ऊधमसिंह नगर जिले के दारोगा दंपती योद्धा की तरह डटे रहे

रुद्रपुर, वीरेंद्र भंडारी : असली योद्धा वही कहलाता है जो मुश्किल वक्त में मैदान पर डटा रहे। कोरोना महामारी भी एक ऐसा ही संकट बनकर आई जब हमें योद्धाओं की जरूरत थी। फ्रंटलाइन वारियर्स में शामिल ऊधमसिंह नगर जिले के दारोगा दंपती ने भी यही मिसाल पेश की। अपराध की रोकथाम के साथ-साथ कोरोना काल में मानव सेवा के प्रति समर्पित निर्मला व सतपाल पटवाल दंपती ने परिवार से अधिक समाज को अपना योगदान दिया। 

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले में तैनात हैं 2015-16 बैच के उपनिरीक्षक निर्मला पटवाल और सतपाल पटवाल। निर्मला वर्तमान में एसएसपी दफ्तर में कार्यरत हैं और सतपाल सिटी पेट्रोङ्क्षलग यूनिट (सीपीयू) में। मूल निवास रामनगर (नैनीताल) में है, लेकिन दंपती रुद्रपुर स्थित पुलिस लाइन में रहता है। साथ में नौ साल की बेटी गरिमा व तीन साल की प्रतिष्ठा भी हैं। कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों की बात करते हुए निर्मला कहतीं हैं कि मार्च के बाद धीरे-धीरे खतरा बढऩे लगा। पुलिस की ड्यूटी तब बहुत अग्रणी हो गई। केस बढ़ते जा रहे थे और मैं डायल 112 नंबर पर तैनात थी। दिन-रात आने वाली काल पर अधिकारियों के निर्देश, लोगों को दवा, खाद्य पदार्थ वितरित करवाना, शांति और कानून व्यवस्था बनाने के लिए 12 घंटे ड्यूटी रहती थी। 

वहीं सतपाल कहते हैं कि कोरोना काल में लोग दूसरे राज्यों में फंसे थे। ऊधमसिंह नगर जिला उप्र की सीमा से लगा हुआ है, इसलिए यहां अधिक एहतियात बरता जा रहा था। बार्डर से आने-जाने वाले लोग खुद परेशान थे ऐसे में उन्हें प्यार से समझाकर मास्क, सैनिटाइजेशन एवं शारीरिक दूरी के नियमों के पालन के लिए प्रेरित करना ज्यादा जरूरी था। 

जनता की सेवा के लिए बच्चों से रहे दूर 

निर्मला व सतपाल बताते हैं कि हम दोनों को पब्लिक के बीच भी ड्यूटी निभानी थी। यह वक्त छुट्टी लेकर घर बैठने का भी नहीं था। हां, ड्यूटी के बाद घर लौटने पर बच्चों को संक्रमण के खतरे की बात दिमाग में रहती थी। हमने फैसला लिया कि दोनों बच्चों को दादा-दादी के पास रामनगर भेज दिया जाए। मई में जब महामारी का प्रकोप बढऩे लगा तो दोनों बेटियों को रामनगर भेज दिया। वीडियो कालिंग से ही दोनों से बात कर लिया करते थे।  

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