हरिद्वार में स्लाटर हाउस बंदी की अधिसूचना पर संवैधानिक सवाल, हाई कोर्ट बताएगा कि क्या सरकार तय करेगी खानपान
हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस पर पाबंदी की अधिसूचना संवैधानिक सवाल बन गई है। संविधान के अनुच्छेद-21 में प्रदत्त जीने का अधिकार में खानपान भी शामिल है। अब अदालत को यह फैसला करना है कि इस अधिकार में सरकार हस्तक्षेप कर सकती है।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस पर पाबंदी की अधिसूचना संवैधानिक सवाल बन गई है। संविधान के अनुच्छेद-21 में प्रदत्त जीने का अधिकार में खानपान भी शामिल है। अब अदालत को यह फैसला करना है कि इस अधिकार में सरकार हस्तक्षेप कर सकती है।
हरिद्वार निवासी इफ्तिकार व अन्य ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें राज्य सरकार की ओर से मार्च 2021 में हरिद्वार जिले में स्लाटर हाउस पूरी तरह बंद करने की अधिसूचना को चुनौती दी गई है। पहले सरकार ने केवल कुंभ मेला क्षेत्र में मीट व शराब की बिक्री प्रतिबंधित करने की अधिसूचना जारी की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार धार्मिक क्षेत्रों में मांस की बिक्री प्रतिबंधित कर सकती है लेकिन पूरे जिले में नहीं। यह आदेश अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने वाला है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद वशिष्ट ने सरकार की ओर से एक बेसलाइन सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि उत्तराखंड में 72 फीसद लोग मांसाहारी हैं। इसमें अन्य राज्यों के आंकड़ों का भी जिक्र करते हुए सवाल उठाया है कि सरकार कैसे इस तरह का असंवैधानिक निर्णय ले सकती है। मामले में याचिकाकर्ता नगरपालिका क्षेत्र के अंतर्गत का निवासी है जबकि अधिसूचना नगर निगम द्वारा जारी की गई है।
ऐसे में अब याचिकाकर्ता ने नगर निगम की अधिसूचना को चुनौती देने के लिए याचिका में संशोधन के लिए एक सप्ताह का समय मांगा गया है। सरकार की ओर से सीएससी चंद्रशेखर रावत ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में अगली सुनवाई 27 अगस्त नियत की है।