जीत के नायक : अल्मोड़ा के छत्रपति जोशी ने स्थापित की थी बीएसएफ की संचार प्रणाली

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का यह विशाल संचार तंत्र छत्रपति जोशी ने ही स्थापित किया था। इस युद्ध में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी की सहायता के लिए भी जोशी ने तुरत-फुरत वायरलेस नेटवर्क स्थापित किया था। जिससे सूचना तंत्र मजबूत हुआ और सैनिकों को बढ़त मिली।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 05 Dec 2020 11:42 AM (IST) Updated:Sat, 05 Dec 2020 11:42 AM (IST)
जीत के नायक : अल्मोड़ा के छत्रपति जोशी ने स्थापित की थी बीएसएफ की संचार प्रणाली
बचपन में ही सेल से रेडियो बजा चुके छत्रपति ने वैज्ञानिक सोच से प्रो. कृष्णन का दिल जीत लिया।

प्रमोद पांडे, हल्द्वानी : 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत और पृथक बांग्लादेश राष्ट्र निर्माण की चर्चा उत्तराखंड के छत्रपति जोशी के बिना अधूरी है। जीत के नायकों में एक बेतारों का यह महारथी भी शामिल था। उनका तंत्र इतना सटीक था कि संभावित आक्रमण की सूचना चार मिनट पहले ही मिल जाने से भारतीय सेनानायकों ने शत्रु के लड़ाकू विमानों व टैंकों को भारी क्षति पहुंचाई थी। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का यह विशाल संचार तंत्र छत्रपति जोशी ने ही स्थापित किया था। इस युद्ध में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी की सहायता के लिए भी जोशी ने तुरत-फुरत वायरलेस नेटवर्क स्थापित किया था।

अल्मोड़ा के प्रसिद्ध फौजदारी अधिवक्ता हरिश्चंद्र जोशी के पुत्र छत्रपति का जन्म 23 जुलाई 1922 को सेलाखोला मोहल्ले में हुआ था। राजकीय इंटर कालेज अल्मोड़ा से इंटर मीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद उन्होंने 1939 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विज्ञान स्नातक के पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। जबकि 1942 में इलाहाबाद विवि से स्नातकोत्तर करने के लिए भौतिकी (बेतार) में प्रवेश लिया। तब भौतिकी के विभागाध्यक्ष प्रो. केएस कृष्णन से उन्होंने धातु-सिद्धांत के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की। बचपन में ही टार्च के बुझे हुए सेल से रेडियो बजा चुके छत्रपति ने अपनी वैज्ञानिक सोच से प्रो. कृष्णन का दिल जीत लिया। परिणामस्वरूप सर सीवी रमण से उनकी मेधा से अवगत कराया। उन दिनों कैंब्रिज जाने से पूर्व रमण के शिष्य विक्रम साराभाई पुणे में अपनी आकाशीय किरण प्रयोगशाला (कास्मिक रे लैब) के लिए योग्य प्रभारी की खोज में थे। इसके लिए सर रमण, होमी भाभा तथा साराभाई ने उनका साक्षात्कार लिया, जिसमें वह अव्वल आए थे। 1945 में इस लैब से जुडऩे के बाद उन्होंने जो शोध किए, उनकी गूंज सुनकर भारत के तत्कालीन वायसराय वेवल भी वहां का भ्रमण किया था।

1949 में उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस बेतार अफसर (पुलिस अधीक्षक के समकक्ष) पद पर लखनऊ जाकर दायित्व संभाला। 1950 में विशिष्ट उपकरण विकसित कर प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। इसी तंत्र से रावलपिंडी से नेहरू की हत्या के लिए कुछ लोगों को भेजे जाने का भंडाफोड़ हुआ था। बाद में उन्होंने तिब्बत सीमा पर दस हजार से 16 हजार फीट की ऊंचाइयों पर स्थित चौकियों में पुलिस बेतार स्टेशन खोले। अत्यधिक ठंड के कारण जम जाने से इस ऊंचाई पर बेटरी वाले वायरलेस सेट काम नहीं कर सकते थे, लिहाजा उन्होंने स्वचालित बैटरी जनरेटर का उपयोग किया तथा मिलम, गब्र्यांग, निलंग, नीती, माणा, कुटी बेदांग जैसे क्षेत्रों में बेतार स्टेशन स्थापित किए। यानी भारत-तिब्बत पर संचार व्यवस्था को समृद्ध बनाया।

1965 में भारतीय सीमाओं में शत्रुओं द्वारा घुसपैठ को रोकने व सुरक्षा व्यवस्था हेतु सीमा सुरक्षा बल का गठित हुआ। इसकी संचार व्यवस्था को स्थापित करने के लिए छत्रपति जोशी को 1971 में महानिदेशक बनाया गया। इसके साथ ही निदेशक (पुलिस समन्वयन) का पदभार भी ग्रहण किया, जिसमें अंतरराज्यीय पुलिस संचार व इंटरपोल आते थे। उन्होंने बीएसएफ की विशाल संचार व्यवस्था प्रणाली स्थापित कर उस रूप तक पहुंचाया, जो बाद में 1971 में ही तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक लड़े गए युद्ध में भारत की जीत का कारण बना। 1983 में देश का चौथा नागरिक सम्मान पद्मश्री से अलंकृत छत्रपति ने 28 अगस्त 1990 को लखनऊ में अंतिम सांस ली।

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