भवाली रोड पर छावनी परिषद के दुकानदारों को फिर दुकानें खाली करने का नोटिस

नैनीताल-भवाली रोड़ पर स्थित छावनी परिषद के दुकानदारों के सामने एक बार फिर संकट खड़ा हो गया है। छावनी परिषद ने कब्जाधारी दुकानदारों को अतिक्रमणकारी मानते हुए दुकान खाली करने के नोटिस चस्पा करना शुरू कर दिया है। जिससे दुकानदारों में खलबली मची है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 10 Apr 2021 12:21 PM (IST) Updated:Sat, 10 Apr 2021 12:21 PM (IST)
भवाली रोड पर छावनी परिषद के दुकानदारों को फिर दुकानें खाली करने का नोटिस
भवाली रोड पर छावनी परिषद के दुकानदारों को फिर दुकानें खाली करने का नोटिस

जागरण संवाददाता, नैनीताल : नैनीताल-भवाली रोड़ पर स्थित छावनी परिषद के दुकानदारों के सामने एक बार फिर संकट खड़ा हो गया है। छावनी परिषद ने कब्जाधारी दुकानदारों को अतिक्रमणकारी मानते हुए दुकान खाली करने के नोटिस चस्पा करना शुरू कर दिया है। जिससे दुकानदारों में खलबली मची है। पिछले  साल दुकानदारों पर बेदखली का संकट आया था। कैंट बोर्ड ने दुकानों की नए सिरे से नीलामी और पुराने लोगों को बेदखल करने के प्रस्ताव पर सहमति जता दी थी। दरअसल भवाली रोड में छावनी परिषद की दुकानें हैं। 20 दुकानों को किराए पर दिया है। लंबे समय से इन दुकानदारों ने किराया जमा नहीं किया। छावनी परिषद के स्टेट ऑफीसर व मुख्य कार्यकारी अधिकारी के यहां दुकानदारों का पब्लिक प्रीमेसेज इविक्शन एक्ट के तहत केस चल रहा था। अब छावनी परिषद की ओर से 20 दुकानदारों को दूकानें नोटिस मिलने के 15 दिन के भीतर खाली करने को कहा है।

सांसद भट्ट ने दिया था भरोसा

छावनी परिषद के दुकानदारों की बेदखली का मामला सांसद अजय भट्ट तक पहुंचा था। तब उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात करने के साथ ही दुकानदारों को राहत देने के लिए पत्र भी लिखा था। इसके बाद कार्रवाई रुकी तो दुकानदारों ने सांसद का अभिनंदन भी किया। अब छावनी परिषद के नोटिस मिलने के बाद दुकानदारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। प्रभावित दुकानदारों का कहना है कि छावनी परिषद को फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस मामले को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी अब तेज होने के आसार हैं।

तीन से पांच साल में नीलामी अनिवार्य

बकौल सीईओ छावनी परिषद एक्ट 2006 की धारा 267 के तहत हर तीन से पांच साल में सरकारी संपत्ति की नीलामी अनिवार्य है। नियमों के कारण कैंट प्रबंधन भी बंधा हुआ है। भवाली रोड स्थित कैंट की 20 दुकानों का विवाद 33 साल से चला आ रहा है। 1987 में पहली बार दुकानदारों को बेदखली का नोटिस दिया गया था। मामला सिविल कोर्ट से हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक भी गया। कोर्ट के निर्णय के संबंध में दुकानदार और कैंट प्रबंधन एकमत नहीं है। दुकानदार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपने पक्ष में बता रहे है। वहीं कैंट सीईओ ने बताया कि सभी न्यायालयों से प्रत्यक्ष तौर पर दुकानें खाली कराने का आदेश नहीं है, लेकिन निर्णय में उल्लेख है कि उक्त लोग किरायेदार नहीं बल्कि लाइसेंस धारक है जिनकों छावनी परिषद के नियमों के आधार पर निकाला जा सकता है।

चार पीढि़यों से चला आ रहा है धंधा

एक तरफ छावनी परिषद के नियम है, तो दूसरी ओर 20 परिवारों की करीब चार पीढि़यों से चली आ रही रोजी रोटी जुड़ी है। जहां कैंट प्रबंधन नियमों का हवाला देकर दुकानदारों को बेदखल कर नए सिरे से दुकानों की नीलामी करना चाहता है। वहीं दूसरी ओर दुकानदारों को अपने रोजगार व परिवार के पालन पोषण की चिंता सता रही है। कुछ दुकानदारों का तो कहना है कि दुकानें छिनी तो वह परिवार सहित कैंट कार्यालय के सामने धरना देंगे। बता दें के 2008-09 से कुछ दुकानदारों ने सालाना शुल्क देना बंद कर दिया। कुछ समय बाद शुल्क देना शुरू किया, लेकिन 2013 के बाद छह दुकानदारों को छोड़ अन्य ने सालाना शुल्क जमा नही किया है। जो कि सभी 20 दुकानदारों पर करीब 70-80 लाख बनता है।

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