Uttarakhand Assembly Election 2022 : भाजपा को भाये तिवारी, कांग्रेस चली पंत के पथ, कद्दावर नेताओं के बहाने जीत का जुगाड़
पहाड़ में दो बड़ी राजनीतिक शख्सियतें हमेशा से केंद्र बिंदु रही हैं। एक भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत और दूसरे पूर्व सीएम एनडी तिवारी। स्व. एनडी तिवारी तीन वर्ष पहले तक राजनीति में सक्रिय रहे। पंत के नाम से कभी भी सत्ताधारियों ने जनता से वोट नहीं मांगा।
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : राष्ट्रीय दलों के नेताओं को लगने लगा है कि अब मोदी, अटल, नेहरू, इंदिरा के साथ-साथ प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए स्थानीय बड़े चेहरों को भी भुनाना जरूरी है। इसीलिए कद्दावर स्थानीय राजनीतिक चेहरों के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढऩे की जुगत लगाने लगे हैं। भाजपा ने इसकी शुरुआत दिग्गज कांग्रेसी पूर्व सीएम एनडी तिवारी को गौरव सम्मान देते हुए सिडकुल का नाम उनपर रखने की घोषणा करके कर दी है। इस ओर कांग्रेस भी एक कदम और आगे बढ़ती दिख रही है। भाजपा के जवाब में पार्टी भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत के पैतृक गांव खूंट पहुंच गई। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शुक्रवार को यहां जनसभा कर पं. पंत से खुद और पार्टी के जुड़ाव को दमदारी से रखा। हालांकि इसमें बड़ी शख्यितों को याद करने के साथ ही जातिगत गुणा-भाग भी नजर आ रहा है।
विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी जंग तेज हो गई है। भाजपा, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी, सभी में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची है। सत्ता हासिल करने के लिए इनमें से कोई भी दल पीछे नहीं रहना चाहते। यही कारण है कि अब स्थानीय बड़े राजनीतिक चेहरों को हथियाने की होड़ मच गई है। इसमें भाजपा ने सबसे ज्यादा तेजी दिखाई। पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को उत्तराखंड गौरव से नवाज कर इसकी शुरुआत कर दी। ऐसे में कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली। उसने भारत रत्न प. गोङ्क्षवद बल्लभ पंत के गांव खूंट में जनसभा कर जवाबी रणनीति तैयार कर ली।
पहाड़ में दो बड़ी राजनीतिक शख्सियतें हमेशा से केंद्र बिंदु रही हैं। एक भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत और दूसरे पूर्व सीएम एनडी तिवारी। स्व. एनडी तिवारी तीन वर्ष पहले तक राजनीति में सक्रिय रहे। उनके रहते प. गोविंद बल्लभ पंत के नाम से कभी भी सत्ताधारियों ने जनता से वोट नहीं मांगा। पहली बार चुनावों में उनके नाम का भी जोरदार तरीके से उपयोग हो रहा है। इसमें दो स्वार्थ निहित हैं। एक तरफ जातिगत वोट सधेंगे और दूसरी तरफ मतदाताओं का दिली जुड़ाव भी गहरा होगा। यह प्रयोग कितना कारगर होगा यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन नाम का यह राजनीतिक खेल रोमांचक दौर में पहुंच गया है।