बीमा की किस्तें काटने में हुई चूक तो बैंक प्रबंधन को करना होगा भुगतान

प्रीमियम राशि बैंक खाते से काटे जाने में हुई चूक की जिम्मेदारी बैंक प्रबंधन की होगी। ऐसे मामले में बैंक प्रबंधक को पूरी किस्तों का भुगतान बीमाधारक को करना होगा। मामले में जिला उपभोक्ता आयोग ने एसबीआइ को प्रीमियम राशि बीमा धारक को दिए जाने के आदेश दिए हैं।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Thu, 08 Apr 2021 06:07 AM (IST) Updated:Thu, 08 Apr 2021 06:07 AM (IST)
बीमा की किस्तें काटने में हुई चूक तो बैंक प्रबंधन को करना होगा भुगतान
बैंक प्रबंधन ने कहा कि शाखा के कंप्यूटरीकृत होने के दौरान वादी का खाता कंप्यूटरीकृत होने से छूट गया

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : बीमाधारक की प्रीमियम राशि बैंक खाते से काटे जाने में हुई चूक की जिम्मेदारी बैंक प्रबंधन की होगी। ऐसे मामले में बैंक प्रबंधक को पूरी किस्तों का भुगतान बीमाधारक को करना होगा। ऐसे एक मामले में जिला उपभोक्ता आयोग ने भारतीय स्टेट बैंक को प्रीमियम राशि बीमा धारक को दिए जाने के आदेश दिए हैं।

पिथौरागढ़ निवासी सुशील खत्री ने एसबीआइ नाकोट के माध्यम से एसबीआइ लाइफ में 50 हजार रुपये की बीमा पालिसी 10 वर्षो के लिए ली। उन्होंने बैंक प्रबंधन को उनके खाते से हर वर्ष 559 रुपये की धनराशि बीमा प्रीमियम के लिए काटने को अधिकृत किया। पालिसी की अवधि पूरी होने पर बीमा धारक परिपक्व धनराशि लेने बैंक पहुंचे तो बैंक ने उन्हें 2212 रुपये का भुगतान खाते में कर दिया। कम धनराशि मिलने पर उन्होंने जवाब मांगा तो बताया कि बैंक ने तीन वर्ष के बाद प्रीमियम जमा ही नहीं करवाया।

बीमा धारक खत्री ने पूरी धनराशि दिलाए जाने के लिए मामला उपभोक्ता आयोग के समक्ष रखा। उन्होंने बैंक शाखा और बीमा कंपनी एसबीआइ लाइफ को इसके लिए जिम्मेदार बताया। आयोग के अध्यक्ष एवं जिला जज डा.जीके शर्मा और चंचल सिंह बिष्ट ने मामला सुना। बैंक प्रबंधन ने बैंक प्रबंधन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बैंक की शाखा के कंप्यूटरीकृत होने के दौरान वादी का खाता कंप्यूटरीकृत होने से छूट गया, जिसके चलते तीन वर्ष बाद किस्तें नहीं कट पाई।

आयोग ने इसे सेवा में कमी का मामला माना। आयोग ने कहा कि जब बैंक को किस्त काटने के लिए अधिकृत किया गया गया था तो इसकी जिम्मेदारी बैंक प्रबंधन की थी। आयोग ने यह भी कहा कि वादी को भी यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए था कि उसकी किस्तें नियमित कट रही है या नहीं। अपने फैसले में आयोग ने इसे सेवा में कमी का मामला मानते हुए बीमा कंपनी को वादी को 10 वर्ष की किस्तों का भुगतान करने के आदेश दिए। यह धनराशि बीमा कंपनी बैंक प्रबंधन से वसूल करेगी। इस धनराशि में पूर्व में वादी को दे दी गई धनराशि काट ली जाएगी। आयोग ने वादी को मानसिक कष्ट के लिए पांच हजार और वाद व्यय के लिए पांच हजार रुपये दिए जाने के आदेश भी दिए हैं।

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