उत्तराखंड में जंगली सूअर मारने पर फिर प्रतिबंध, मारने पर दर्ज होगा मुकदमा nainital news

पहाड़ से लेकर मैदान तक के किसी खेत में घुसकर अगर जंगली सूअर आतंक मचा रहे हैं तो काश्तकार अब भूलकर भी उन्हें मारने की कोशिश न करें।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Wed, 11 Dec 2019 10:30 AM (IST) Updated:Thu, 12 Dec 2019 12:04 PM (IST)
उत्तराखंड में जंगली सूअर मारने पर फिर प्रतिबंध, मारने पर दर्ज होगा मुकदमा nainital news
उत्तराखंड में जंगली सूअर मारने पर फिर प्रतिबंध, मारने पर दर्ज होगा मुकदमा nainital news

हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : पहाड़ से लेकर मैदान तक के किसी खेत में घुसकर अगर जंगली सूअर आतंक मचा रहे हैं तो काश्तकार अब भूलकर भी उन्हें मारने की कोशिश न करें। वरना उन्हें वन विभाग के मुकदमे या अन्य कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल रिजर्व फॉरेस्ट से बाहर खेतों में आकर फसल को चौपट करने वाले जंगली सूअरों को मारने पर फिर से प्रतिबंध लग चुका है। केंद्र सरकार की ओर से दी गई छूट नवंबर में खत्म हो चुकी है। ऐसे में काश्तकारों की परेशानी बढऩा लाजिमी है।

किसानों के लिए बढ़ी मुसीबत

उत्तराखंड के काश्तकार जंगली जानवरों की वजह से सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं। जंगली सूअर व बंदरों से फसल को बचाना पहाड़ में सबसे बड़ी चुनौती है। यहीं वजह है कि कई इलाकों में लोगों ने खेती करना तक छोड़ दिया है। इस परेशानी को देखते हुए नवंबर 2018 में केंद्र सरकार ने एक साल के लिए सूअरों को मारने की छूट दी थी। हालांकि  यह नियम वन्यजीवों के आरक्षित क्षेत्र से बाहर खेतों में पहुंचने पर लागू था, लेकिन पिछले माह 12 नवंबर को यह अस्थायी समय सीमा समाप्त हो गई। अब काश्तकार द्वारा सूअर को मारने पर वाइल्ड लाइफ एक्ट के तहत कार्रवाई होगी। अनुसूची पांच का वन्यजीव होने के कारण डीएफओ जुर्माना लगाकर छोड़ सकते हैं या फिर आरोपित को गिरफ्तार भी किया जा सकता है।

हर माह बीस हेक्टेयर फसल प्रभावित

प्रदेश का 71 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र जंगल का हिस्सा है। हाथी, बंदर, जंगली सूअर और अन्य वन्यजीव लगातार खेतों में धमककर नुकसान करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हर माह करीब बीस हेक्टेयर खेती को वन्यजीव नुकसान पहुंचाते हैं।

84 तहसीलों में थी छूट

पिथौरागढ़, चम्पावत व बागेश्वर जिले के काश्तकारों को जंगली सूअर मारने की पूरी तरह छूट थी। प्रदेश की कुल 84 तहसीलों के काश्तकारों को इस आदेश से राहत मिली। जिसमें हल्द्वानी, कालाढूंगी व रामनगर तहसील भी शामिल थी।

पहाड़ के लोग झेलते हैं मुसीबत

पीके सिंह, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग ने बताया कि जंगली सूअरों का सबसे ज्यादा आतंक पहाड़ के काश्तकार झेलते हैं। यह फसल की जड़ों को खोदकर खाता है। खाने से ज्यादा यह फसल को बर्बाद करता है।

फिर से मांगी गई है अनुमति

राजीव भरतरी, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, उत्तराखंड वन विभाग का इस बारे में कहना है कि जंगली सूअरों को मारने की छूट खत्म हो चुकी है। स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड को प्रस्ताव भेज फिर से अनुमति मांगी है। उम्मीद है कि फिर से परमिशन मिल जाएगी।

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