पटल सहायक ने लगाया था सरकारी कोष में 20 लाख का चूना, जमानत अर्जी खारिज
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश व विशेष न्यायाधीश एंटी करप्शन प्रीतू शर्मा की कोर्ट ने समाज कल्याण छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपित विभाग के पटल सहायक मोहन गिरी गोस्वामी की जमानत अर्जी खारिज कर दी। प्रधान सहायक पर आरोप है कि उसने बिना सत्यापन के छात्रवृत्ति की रकम जारी कर दी!
नैनीताल, जागरण संवाददाता : प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश व विशेष न्यायाधीश एंटी करप्शन प्रीतू शर्मा की कोर्ट ने समाज कल्याण छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपित विभाग के पटल सहायक मोहन गिरी गोस्वामी की जमानत अर्जी खारिज कर दी। प्रधान सहायक पर आरोप है कि उसने बिना सत्यापन के छात्रवृत्ति की रकम जारी कर दी, जिससे सरकार को 20 लाख राजस्व का नुकसान हुआ।
डीजीसी फौजदारी सुशील कुमार शर्मा ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए दलील दी कि डीजीसी ने बताया कि समाज कल्याण विभाग के माध्यम से जो छात्रवृत्ति की धनराशि एससीएसटी छात्रों के लिए संबंधित कॉलेजों को निर्गत की जाती है, नियमानुसार वह सभी छात्र जनपद के ही होने चाहिए। छात्रवृत्ति देते समय जाति प्रमाण पत्र, आय व शैक्षिक प्रमाण पत्र चेक किये जाते हैं, छात्रवृत्ति उन छात्रों को दी जाती है. जिनके अभिभावकों की वास्तविक आयु दो लाख रुपये हो। छात्रवृत्ति धनराशि छात्रों के खाते में डाली जाती है।
जिला समाज कल्याण अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों अध्ययनरत छात्रों का सत्यापन स्वयं अथवा उनके द्वारा नामित किसी विभागीय अधिकारी, कर्मचारी द्वारा किये जाने के बाद ही धनराशि हस्तांतरित की जाती है। 2014-15 में जिला समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय के पटल सहायक मोहन गिरि निवासी शांत बाजार, जिला चंपावत द्वारा मोनार्ड यूनिवर्सिटी से प्राप्त दशमोत्तर छात्रवृत्ति के आवेदन पत्रों को चेक किया गया था।
28 छात्रों का भौतिक सत्यापन न कर उनके पक्ष मे 20 लाख से अधिक की छात्रवृत्ति निर्गत करवा दी जबकि पटल सहायक के उनका दायित्व था कि वह छात्रवृत्ति दिये जा रहे छात्रों के प्रपत्रों,आवेदन, को विभागीय नियमानुसार त्रुटिरहित होने का समाधान करने के उपरान्त ही छात्रवृत्ति निर्गत करवाते लेकिन मोहन गिरी गोस्वामी ने तत्कालीन समाज का अधिकारी जगमोहन कफोला तथा मोनार्ड यूनिवर्सिटी के हितबद्ध अभियुक्तों के साथ सांठगांठ कर 28 छात्रों के पक्ष मे 20 लाख 63 हजार से अधिक के चेक जारी कर दिए।
चेकों को विभागीय प्रक्रिया के अनुसार डिस्पैच रजिस्टर में अंकित ना कर मेमो के रूप में यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि अंकित अग्रवाल के द्वारा जिला सहकारी बैंक हापुड़ के लिये प्रेषित कर दिये। यह कृत्य मोहन गिरी ने आपराधिक षडयंत्र में शामिल होकर सम्पन्न किया।
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