ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से उत्‍तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्‍थलों में शुमार है बागनाथ मंदिर

गैरहिमानी सदानीरा सरयू-गोमती नदियों के संगम पर स्थित उत्तराखंड के प्रयाग व काशी के नाम से विख्यात बागेश्वर में प्रसिद्ध शिवालय बागनाथ मंदिर है। बागनाथ मंदिर चंदवंशीय राजा लक्ष्मीचंद ने वर्ष 1602 में निर्मित करवाया था। कुमाऊं पर लक्ष्मीचंद का शासनकाल वर्ष 1597 से 1621 तक माना जाता है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 10:00 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 10:00 AM (IST)
ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से उत्‍तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्‍थलों में शुमार है बागनाथ मंदिर
ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से उत्‍तराखंड के प्रमुख धार्मिक स्‍थलों में शुमार है बागनाथ मंदिर

जागरण संवाददात, बागेश्‍वर : गैरहिमानी सदानीरा सरयू-गोमती नदियों के संगम पर स्थित उत्तराखंड के प्रयाग व काशी के नाम से विख्यात बागेश्वर में प्रसिद्ध शिवालय बागनाथ मंदिर है। बागनाथ मंदिर चंदवंशीय राजा लक्ष्मीचंद ने वर्ष 1602 में निर्मित करवाया था। कुमाऊं पर लक्ष्मीचंद का शासनकाल वर्ष 1597 से 1621 तक माना जाता है। मंदिर के निकट विद्यमान वाणेश्वर मंदिर वास्तु कला की दृष्टि से बागनाथ मंदिर के समकालीन ही है। भैरवनाथ मंदिर बाद में बनाया गया।

बागनाथ मंदिर परिसर, लघु मूर्तिशैड एवं बागेश्वर के बाबा अखाड़े, भैरव नाथ, ढिकाल भैरव, वाणेश्वर तथा अन्य आधुनिक मंदिरों में लगभग सातवीं से दसवीं शताब्दी के दौरान निर्मित देवालयों के अनेक अवशेष व प्रतिमाएं रखी गई हैं। उमा-महेश, सूर्य, विष्णु, पार्वती, महिषसुरमदिनी, दशावतार पट्ट, सप्तमातृका पट्ट, चतुर्मुखी, पंचमुखी शिवलिंग, हरिहर, गणेश, कार्तिकेय सहस्रमुखी शिवलिंग शेषशायी विष्णु, नन्दी, गणेश आदि प्रतिमाएं उल्लेखनीय हैं। बागनाथ मंदिर के पुजारी नंदन रावल ने बताया कि बागनाथ मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि, सावन के महीने व उत्तरायणी पर्व को काफी संख्या में भक्तों की भीड़ जुटती है। यह प्रदेश के साथ पूरे देश के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

पौराणिक मान्यताएं

जिस तरह ऋषि सगर के पुत्र भगीरथ गंगा नदी को अपने पूर्वजों के तर्पण को लाए थे। उसी तरह ऋषि वशिष्ठ सरयू नदी अवतरित की थी। इस स्थल को मार्कंडेय मुनि की तपस्थली अथवा तपोभूमि माना जाता हैं। उनके तप से सरयू नदी की धारा प्रभावित हो गई थी। जिसके बाद माता पार्वती ने गाय का रूप धारण कर मार्कंडेय मुनि के सामने घास चरने लगी। वहां पर भगवान शिव बाघ का रुप धारण कर घोर गर्जन करते हुए गाय यानि पार्वती पर झपटे। गाय जोर-जोर से रम्भाती हुई मुनि की शिला की ओर दौड़ी। इससे मार्कंडेय मुनि की समाधि भंग हो गई। बाघ से गाय को बचाने के लिए मुनिवर अपनी शिला छोड़कर गाय की ओर दौड़े। सरयू नदी मार्कंडेय शिला को स्पर्श करती हुई आगे बढ़ गई। बाघ एवं गाय रूपी शिव और पार्वती भी मुनि के समक्ष अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। इसे व्याघ्रेश्वर कहा जाने लगा जो कालांतर में बागनाथ बना।

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